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________________ ( ३८८ ) जिज (जितम्) = जीता हुआ, जीतना । तत्तं (तप्तम्) = तपा हुअा, तपना कयं (कृतम्) = किया हुआ, करना । : (दृष्टम्) = देखा हुअा, देखना । मिलाणं, मिलानं (म्लानम्) = कुम्हलाया हुअा, म्लान हुअा, म्लान । अक्खायं (आख्यातम्) = कहा हुआ, कहना । निहियं । निहितम्) = स्थापित किया हुआ, स्थापित करना। आणत्तं (प्राज्ञप्तम्) = प्राज्ञा किया हुआ, आज्ञा। संखयं (संस्कृतम्) = संस्कार, संस्कृत किया हुआ। सक्कयं (संस्कृतम्) = संस्कृत । आकुटुं (प्राक्रुष्टम्) =आक्रोश किया हुअा, आक्रोश । विणटुं (विनष्टम्) = विनष्ट, विनाश । पणटुं (प्रपष्टम्) = प्रनष्ट, नाश । मळं (मृष्टम्)= शुद्ध, शोधन हयं (हतम्) = हत हुआ, मारना। जायं (जातम्) = पैदा हुआ, होना। गिलारणं, गिलानं (ग्लानम्) = ग्लान हुआ, ग्लान । परूविश्र (प्ररूपितम्) = प्ररूपित किया हुआ, प्ररूपण करना । ठियं (स्थितम्) = स्थित, स्थान । पिहियं (पिहितम्) = ढका हुआ, ढंकना। पएणत्तं, पन्नत्तं (प्रज्ञपितम्) प्रज्ञापित, प्रज्ञापन करना। पत्रवियं (प्रज्ञपितम) किलिट्ठ (क्लिष्टम्) = क्लेश युक्त, क्लिष्ट । सुयं (स्मृतम्) = स्मरण किया हुआ, स्मरण । सुयं (श्रुतम्) = सुना हुआ सुनना । संसर्ल्ड (संसृष्टम्) = संसर्ग युक्त, संसर्ग। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001702
Book TitlePrakritmargopadeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1968
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size16 MB
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