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________________ ( ३५४ ) ९. 'उसका तेल'' इस अर्थ में 'एल्ल' ( तैल२) प्रत्यय का प्रयोग होता है । जैसे :कडुअ + एल्ल = कडुएल्लं ( कटुकस्य तैलम्-कटुकतैलं ) = कडुवा तेल, सरसों का तेल । दीव + एल्ल = दीवेल्लं ( दीपस्य तैलम्-दीपतैलम् ) = दीपक का तेल। एरंड + एल्ल = एरंडेल्लं (एरण्डस्य तैलम्-एरण्ड तैलम् ) = एरण्डी का तेल । धूप + एल्ल = धूपेल्लं (धूपस्य तैलम्-धूपतैलम् ) =धूपयुक्त तेल । १०. 'स्वार्थ' अर्थ को सूचित करने के लिए 'अ', 'इल्ल' और 'उल्ल' प्रत्यय का व्यवहार विकल्प से होता है । जैसे: चन्द्र + अ = चन्द्रओ, चन्द्रो ( चन्द्रकः ) = चाँद, चन्द्रमा। पल्लव + इल्ल = पल्लविल्लो, पल्लवो (पल्लवक:)= पल्ला, किनारा। हत्थ + उल्ल = हत्थुल्लो, हत्थो ( हस्तकः ) = हाथ । ११. कुछ अनियमित तद्धित :एक्क + सि = एक्कसि । एक्क + सि = एक्कसि ( एकदा ) = एक समय । एक्क + इआ = एक्कइआ ) भ्र + मया = भुमया ) (भ्रूः ) = भौंह । भ्र + मया = भमया ) १. हे० प्रा० व्या० ८।२।१५५ । २. दीपस्य तैलं-'दीपतैलं' शब्द में 'तैल' शब्द ही किसी समय अपना स्वतन्त्र व्यक्तित्व खोकर प्रत्यय बना होगा । इसीलिए भाषा में ( गुजराती भाषा में ) 'पेल' में तैल शब्द समा गया है तो भी 'धूपेल तेल' शब्द का व्यवहार होता है। ३. हे० प्रा० व्या० ८।२।१६४। ४. हे० प्रा० व्या० ८।२।१६२ । ५. हे० प्रा० व्या० ८।२।१६७ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001702
Book TitlePrakritmargopadeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1968
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size16 MB
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