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________________ ( ३५३ ) उल्ल-सद्द + उल्ल =सद्दल्लो ( शब्दवान् ) =शब्दवान् , शब्दवाला । मण-धण+मण =धणमणो ( धनवान् ) =धनवान । सोहा + मण = सोहामणो (शोभावान्) =सुहावना, शोभावान् । बोहा+मण = बोहामणो (भयवान्) =भयावना, भय वाला । मंत-धो+मंत=धीमंतो ( धीमान् ) =धीमंत, बुद्धिमान् । वंत-भत्ति + वंत = भत्तिवंतो ( भक्तिमान् ) =भक्तिवंत । ७. 'तो'प्रत्यय पञ्चमी विभक्ति को सूचित करता है। सव्व + तो सव्वत्तो ( सर्वतः ) =सब प्रकार से, सब ओर से । क +त्तोकत्तो ( कुतः) =कहाँ से, किससे । ज+त्तो = जत्तो ( यतः ) =जहाँ से, जिससे । त+त्तो= तत्तो ( ततः) =वहाँ से, उससे । इ+ त्तो= इत्तो ( इतः) =यहाँ से, इससे । ८. 'हि', 'ह' और 'त्थ' प्रत्यय सप्तमी के अर्थ सूचित करते हैं । जैसे : ज + हि = जहि ( यत्र ) = यहाँ। . ज+ह = जह , " ज + त्थ = जत्थ ( यत्र) , त + हि = तहि ( तत्र) = वहाँ । त+ह =तह , " त+त्थ = तत्थ , " क + हि = कहि ( कुत्र) = कहाँ । क+ह = कह , . क+स्थ = कत्थ ( कुत्र)" १. हे० प्रा० व्या ८।२।१६० । २. हे० प्रा० व्या० ८।२।१६१ । २३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001702
Book TitlePrakritmargopadeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1968
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size16 MB
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