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________________ ( ३५२ ) देव + त = देवत्तं ( देवत्वम् ) = देवफ्ना , देवत्वं । . बाल + तग = बालत्तगं (बालत्व) = बचपन, शिशुस्व, वालव । ५. 'बार' *अर्थ को बताने के लिए 'हुत्तं" और 'खुत्तो' प्रत्यय का उपयोग होता है । जैसे : एग + हुत्तं = एगहुत्तं ( एककृत्व:-एकवारम् )= एक बार । ति+हुसं = तिहुत्तं ( त्रिकृत्व:-त्रिवारम् )= तीन बार । ति + खुत्तो = तिखुत्तो ( त्रिकृत्वः ,,) ,, तिक्खुत्तो ६. आल', आलु, इत्त, इर, इल्ल, उल्ल', मण, मंत और वंत आदि प्रत्यय 'वाले' अर्थ को प्रकट करते हैं। जैसे:आल-रस + आल = रसाल ( रसवान् )= रसवाला । जटा + आल = जटाल ( जटावान् ) = जटाओं वाला। आलु-दया + आलु = दयालु ( दयालुः) = दयालु, दयावाला । लज्जा+ आलु = लज्जालु ( लज्जालुः) = लज्जावाला। इत्त - मान + इत्त = माणइत्तो (मानवान्) = मानवान, मानवाला। इर -- रेहा + इर = रेहिरो ( रेखावान् ) = रेखावान, रेखावाला । गव्व + इर = गम्विरो (गर्ववान् ) = गर्ववान, गर्ववाला । इल्ल-सोभा + इल्ल = सोभिल्लो ( शोभावान् )= शोभावान् । *'बार' अर्थ में 'क्खंत्तु" प्रत्यय होता है जैसे-द्विक्खत्तु-दो बार । आर्ष प्राकृत में 'हुत्तं' का प्रयोग कम दीखता है परन्तु 'क्खुत्तो' का प्रयोग अधिक होता है । जैसे-दुक्खुत्तो (दो बार), तिक्खुत्तो ( तीन बार ) ऐसे रूप होते हैं। १. हे० प्रा० व्या० ८।२।१५८ । २. हे० प्रा० व्या०८।२।१५९ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001702
Book TitlePrakritmargopadeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1968
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size16 MB
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