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________________ ( ३५० ) प्रथमा और सम्बोधन के बहुचन में 'णो' प्रत्यय लगने पर 'राय' के स्थान में केवल 'राई' का ही उपयोग होता है । - 'इणं' प्रत्यय परे रहने पर 'राय' के 'य' कार का लोप हो जाता है। जैसे राय + इणं = राइणं ( राजानम् ) राय + इणं = राइणं ( राज्ञाम् ) संकेत:-राइ + ण = राईण, राईणं इन रूपों में 'इणं' प्रत्यय नहीं है बल्कि षष्ठी बहुवचन का 'ण' प्रत्यय है । 'अन्' प्रत्ययान्त किसी-किसी शब्द को तृतीया के एकवचन में 'उणा' और पञ्चमी तथा षष्ठी के एकवचन में 'उणो' प्रत्यय लगता है। जैसे : कम्म (कर्मन्) कम्म + उणा = कम्मुणा ( कर्मणः )। कम्म + उणो= कम्मुणो ( कर्मणः )। कुछ अनियमित रूप मणसा (मनसा ) मणसो ( मनसः) मणसि ( मनसि) मणसि ( मनसि ) वयसा ( वचसा) सिरसा ( शिरसा) कायसा ( कायेन ) कालधम्मुणा ( कालधर्मेण) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001702
Book TitlePrakritmargopadeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1968
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size16 MB
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