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________________ प्र० मघवं', मघवा ( मघवा ) ( ३४९ ) मघव, महव ( मघवन् ) शब्द के रूप मघवाणो ( मघवन्तः ) इत्यादि 'पूसा' की भाँति । एकवचन प्र० द्वि० इणं तृ० च० ष० पं० णा णो }" णो रूप की प्रक्रिया प्रत्यय बहुवचन णो स० + णो + इस चिह्न वाले अर्थात् प्रथमा और सम्बोधन के एकवचन में राय, पूस, मघव, आदि नामों के अन्त्य स्वर को दीर्घ होता है। :-- राय = : राया, मघव = मघवा, पूस = पूसा । 'णा' प्रत्यय को छोड़ 'ण'कारादि प्रत्यय परे रहने पर पूस आदि शब्दों के अन्त्य स्वर को दीर्घ होता है : पूस + णो = पूसाणो, राय + णो रायाणो । राय + णा = राइणा, रण्णा । राय + णो = राइणो, रण्णो । १. हे० प्रा० व्या० ८।४।२६५ । Jain Education International इणं = अपवाद प्रथमा और सम्बोधन के सिवाय णकारादि प्रत्यय परे रहने पर 'राय' के स्थान में 'राई' और 'रण' का उपयोग होता है । जैसे For Private & Personal Use Only Add www.jainelibrary.org
SR No.001702
Book TitlePrakritmargopadeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1968
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size16 MB
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