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________________ ( ३२६ > गढ ( घट ) = गढ़ना । जम्भा ( जृम्भ ) = जंभाई या उबासी लेना । तुवर् (त्वर् ) = त्वरा करना, जल्दी करना । पेच्छ् ( प्र + ईक्ष ) = देखना | चोप्पड् ( क्ष् ) = चोपड़ना, घी, तेल वगैरह लगाना । ( अभि + लष ) = अभिलाषा करना, इच्छा करना । अहि + लेख अहि + लंघ चड् ( चट् ) = चढ़ना, वृक्ष पर चढ़ना, ऊपर चढ़ना | नि + क्खा } ( नि + क्षाल् ) = निखारना, साफ करना, कपड़े आदि + क्वार् धोना वि + च्छल् (वि + क्षल ) = धोना । Jain Education International सामान्य शब्द (पुंल्लिङ्ग ) खग्ग ( खड्ग ) = खड्ग, तलवार । उप्पा ( उत्पाद ) = उत्पादन, उत्पत्ति | रस्सि ( रश्मि ) = घोड़े की लगाम । मुइंग, मिइंग ( मृदङ्ग ) = मृदंग विचुअ ( वृश्चिक ) = बिच्छू । भिंग (भृङ्ग ) = भृंग, भ्रमर । सिंगार ( शृङ्गार ) = श्रृंगार | = निव (नृप ) = नृप, राजा । छप्पअ, छप्पय ( षट्पद ) = भ्रमर, भँवरा । जामाउअ ( जामातृक ) जामाता, लड़की का पति । मग्गु ( मद्गु ) = एक प्रकार की मछली । सज्ज ( षड्ज) = षड्ज - स्वर विशेष, संगीत के सात स्वरों में एक स्वर । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001702
Book TitlePrakritmargopadeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1968
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size16 MB
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