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________________ ( ३२५ ) दक्खव् ( दृश् ) = दिखाना, कहकर बताना । प+णाम् ( प्र + णाम् ) = देना, सेवा में अर्ज करना । ओ + ग्गाल् ( उद् + गार ) = उगलना, लोहा तथा सोना चांदी को प्रवाही करना - ओगालना । आ + रोव् ( आ + रोप ) = आरोपित करना । मर, मल् ( स्मर् ) = स्मरण करना । चय् ( शक् ) = शकना, खाना । जीह ( जिही ) = लज्जित करना । अण्ह ( अश्ना ) = अशन करना, भोजन करना, खाना । = आरम्भ करना । आ + ढव् ( आ + रभू ) चुक्क् ( च्युतक ) = चूकना, भ्रष्ट होना । पुलो, पुलम ( प्र + लोक् ) प्रलोकना, देखना | पुलआम ( पुलकाय ) = पुलकित होना । वलग्ग ( विलग्न ) = चिपक जाना, लिपट जाना । प + क्खाल् ( प + क्षाल् ) = प्रक्षालन करना, धोना । सिह, ( स्पृह ) = चाहना, स्पृहा करना । प+ ट्ठव् ( प्र + स्था प् ) = प्रस्थान करवाना, भेजना | वि + ण्णव (वि + ज्ञप् ) = विज्ञापन करना, आज्ञा देना । अल्लिव ( अर्पय् ) = अर्पण करना । ओम्वाल् ( उत् + प्लाव ) = प्लावित करना । गोल ( रोमन्थय्, वि + उद् + गार ) = व्युद्गार, जुगाली करना । परि + आल् ( परि + वार् ) = परिवृत्त करना, लपेटना । पयल्ल ( प्र + सर ) = फैलना | नी + हर् (निर् + सर् ) = निकलना । समार् ( सम् + आ + रच् ) सूड्, सूर् ( षूद् ) = सूदना, नाश करना । Jain Education International सँवारना, शुद्ध करना । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001702
Book TitlePrakritmargopadeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1968
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size16 MB
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