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________________ ( ३२४ कील् ( क्रोड् ) = क्रीडा करना, खेलना । छोल्ल् ( तक्ष् ) = छीलना, छोलना, लकड़ी आदि के ऊपरी अंश ( खुरदुरा अंश ) छीलना, चिकना करना । ताव् ( तापय् ) = तपाना | झाम् ( दह् ) जलाना, दाह देना, दग्ध करना । किण् (क्री ) खरीदना । आ + ढा ( आ + दृ ) आदर करना, मानना । प + न्नव् ( प्र + ज्ञापय् ) प्रज्ञापित करना, बताना । प्रोच्चर, कथय् ) = कहना | = व्युच्चर्, कथय् ) = कहना | सं + घ् ( कथ् ) कहना | पज्जर् ( प्र + उत् + चर् वज्जर् (वि + उत् + चर् : चव् ( वच् ) = कहना । जंप ( जल्प ) पिसुण् ( पिसुनय ) = चुगली करना, निन्दा करना । मुण् ( ज्ञा, मुण् ) = जानना | पिज्ज् (पा) = पीना । उंघ् ( उद् + घ्रा, नि + द्रा ) = निद्रा लेना, ऊंघना, झपकी लेना, नींद में इस तरह साँस लेना कि नाक से घर-घर की ध्वनि हो । अब्भुत्त् ( अवभृथ ) = स्नान करना । उ + ठ्ठ ( उत् + स्था ) उठना । छाय, छाअ (छाद् ) = ढाँपना, ढकना, छिपाना । मेलव् ( मेलय् ) = मिलाना, एक में करना । जाव् ( याप् ) = व्यतीत करना, यापन करना । आ + भोय ( आ + भोगय् ) = ध्यानपूर्वक देखना, जानना । परि+णि + व्वा ( परि + निर् + वा ) = शान्त होना । अग्घ ( अर्घ ) = मूल्य करवाना । Jain Education International | = जल्पना, बकवास करना, बोलना, कहना । ** For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001702
Book TitlePrakritmargopadeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1968
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size16 MB
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