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________________ ( २९५ ) स्वयं अपने को खोज, बाहर मत घूम । उसके सभी शल्य नाश हो जायें । हे ब्राह्मण ! बकरे का होम न कर तिल का होम कर । सब जीवों के साथ प्रेम करो । प्राणी के प्राण मत हरो । घोड़े के ऊपर जीन रख । वाक्य ( प्राकृत ) सावज्जं वज्जउ मुणी । ण कोव आयरियं । न हण पाणिणो पाणे । संनिहि न कुण माहणो । संवुडो निक्षुणा पावस्स रजं । सव्वं गंथं कहलं च विप्पजहाहि भिक्खू ! कि नाम होज्ज तं कम्मयं जेणाहं णाणा दुक्खं न गच्छेज्जा । गच्छाहि गं तुमं चित्ता ! वित्तण ताणं न लहे पत्ते । उत्तमठ्ठे गवेसउ । वसामु गुरुकुले निच्चं । असंजमं णवरं न सेवेज्जा । भिक्खू न कमवि छिंदेह | बालस्स बालत्त पस्स । बालाणं मरणं असइ भवेज्ज । सुयं अहिट्टिज्जा । गोयम ! समयं मा पमायउ । अवि एवं विणस्सउ अन्नपाणं । नय, णं दाहामु तुमं नियंठा । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001702
Book TitlePrakritmargopadeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1968
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size16 MB
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