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________________ ( २३० ) मेघ बरसा और मयूर नाचे । ब्राह्मणों ने पूछा, 'महावीर का शील कैसा है ?" उन्होंने पानी पिया और हमने दूध । कौन नहीं जानता कि पानी नीचे जाता है ? मैं ज्ञान से क्रोध को अवश्य मारता हूँ । उसने दुष्ट रीति से संकल्प किया । हम दोनों ने अच्छी तरह से सेवा की । आज का दूध अच्छा था । प्रातः और उसके पश्चात् भी बालक आँगन में खेले । श्रमण बहुमूल्य वस्त्रों को नहीं छूते । लोगों ने ज्ञानार्थ पण्डितों की पूजा की । हमने सत्य बोला । राजा और इन्द्र विनयपूर्वक बोले । मैं और तू महाविद्यालय में गये और राष्ट्रधर्म पढ़ा 1 उसने बहुत अच्छा-अच्छा काम किया और जीवन को सफल किया । महावीर हेमन्त ऋतु में निकले । जब उसने पूछा तब तुमने झूठ बोला । हमने सत्य का जाप किया 1 अनार्यों ने कहा 'सभी प्राणो मारने योग्य हैं लेकिन आर्यों ने कहा 'कोई भी प्राणी मारने योग्य नहीं ।' मोहनदास महापुरुष ने प्रत्येक गाँव में घूमकर राष्ट्र-धर्म का उपदेश दिया । प्रद्युम्न का शिष्य पाटलिपुत्र गया । देश में मनुष्यों ने दुष्काल में दुःख भोगा । शरमिन्दे शिष्य हंसते नहीं । तुमने शिष्यों से शीघ्र पूछा, झूठ क्यों बोले ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001702
Book TitlePrakritmargopadeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1968
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size16 MB
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