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________________ ( २२९ ) गामाणुग्गामं, गामाणुगामं ( ग्रामानुग्रामम् ) = प्रत्येक गाँव में, गाँव-गाँव में, एक गाँव से दूसरे गाँव में । नमो, णमो ( नमः ) = नमस्कार । पगे ( प्रगे ) = प्रातः काल में, सुबह मा (मा) = मा, मत, नहीं । धातु अच्च ( अर्च ) = अर्चना, पूजना । उव + दिस् ( उप + दिश् ) = उपदेश करना । नच्च् ( नृत्य ) = नृत्य करना, नाचना | प + हार् ( प्र + धार् ) = धारना, संकल्प करना । ने, णे ( नी ) = ले जाना । ले आना । - आ + णे ( आ + नी ) सेव् ( सेव् ) = सेवन करना, सेवा करना । हस् ( हस् ) = हँसना । पढ् ( पठ् ) = पढ़ना । पुच्छ् ( पृच्छ ) = पूछना | भण् ( भण् ) = पढ़ना, कहना । रीय् ( री ) = निकलना, जाना । वि + हर् (वि + हर् ) = विहरना, घूमना, अणु + भव् ( अनु + भव ) = अनुभव करना । वाक्य ( हिन्दी ) मैं गाँव में गया और अपने साथ बकरों को ले गया । आर्यपुरुषों ने महावीर को अनेकबार वंदन किया । Jain Education International For Private & Personal Use Only पर्यटन करना, विहार करना । www.jainelibrary.org
SR No.001702
Book TitlePrakritmargopadeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1968
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size16 MB
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