SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 247
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २२८ ) सग्घ ( स्वर्घ ) = सस्ती | केरिस (कीदृश ) = कैसा | नवोण, णवोण, ( नवीन ) = नवीन, नया | अज्जतण, अज्जयण ( श्रद्यतन ) = प्राज का, ताजा । सरस ( सरस ) = सरस, अच्छा, रसवाला । = पच्छ ( पथ्य ) = पथ्य -मार्ग में हित करनेवाला, पाथेय । जुगुच्छ ( जुगुप्स ) जुगुप्सा करनेवाला, घृणा करनेवाला । सह, सुहुम, सुखुम ( सूक्ष्म ) = सूक्ष्म, बारीक, छोटा-सा ! सहल ( सफल ) विहल ( विफल ) विलिअ ( व्यलीक ) = झूठ, असत्य | = सफल । = निष्फल । पुराण, पुराण ( पुराण ) = पुराना, पुरातन । निण्ण, नेण्ण ( निम्न ) = निम्न, नीच । वीलिअ ( व्रीडित ) = लज्जित, शर्मिन्दा | Jain Education International अव्यय तेण ( तेन = उस तरफ, उससे 1 जेण ( येन ) = जिस तरफ, जिससे । अवस्सं ( अवश्यं ) = अवश्य । 1 एव, एवं ( एवम् ) = एवं इस प्रकार | सुट्ठ ( सुष्ठु ) = शोभन, अच्छा, सुन्दर, दुट्ठ ( दुष्ठु ) = खराब, असुन्दर । खिप्पं ( क्षिप्रम् ) = शीघ्र | पच्छा ( पश्चात् ) = अनन्तर, बाद, पीछे । इहेव ( इहैव ) यहीं, यहीं पर । असई ( असकृत् ) = अनेकबार, बारंबार । अतिशय । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001702
Book TitlePrakritmargopadeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1968
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy