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________________ ( २१२ ) अव्यय अलं' ( अलम् ) = बस, पर्याप्त । तओ, तत्तो ( ततः )= उससे, उसके पश्चात् । अरिं, उरि ( उपरि ) = ऊपर । मुसं, मुसा, मूसा, मोसा ( मृषा )=मिथ्या, झूठ, असत्य । हु, खु, खो ( खलु ) = निश्चय । एगया ( एकदा ) = एकदा, एक समय, एक बार । धुवं (ध्र वम् ) = निश्चय । अज्झप्पं, अज्झत्थं ( अध्यात्म ) = आत्मा सम्बन्धि, आंतरिक । सततं, सययं ( सततम् ) = सतत, निरन्तर । इई, इअ, त्ति, ति, इति ( इति ) = इति-इस प्रकार, समाप्ति सूचक अव्यय । विशेषण अवज्ज ( अवद्य ) = अवद्य, न कहने योग्य काम-पाप, दोष । अणवज्ज, अनवज्ज ( अनवद्य )= पापरहित निर्दोष । दुरणुचर ( दुरनुचर )= जिसका आचरण कठिन लगे। सुत्त ( सुप्त) = सुप्त, सोया हुआ । सुत्त ( सूक्त )= सुभाषित । वद्धमाण ( वर्धमान) = बढ़ता हुआ। गढिय ( गृद्ध ) = अतिशय लालची। १. 'अलं' के योग में तृतीया विभक्ति होतो है-'अलं जुद्धेण', 'अलं तवेणं'। २. 'इति' अव्यय के उपयोग के लिये देखिए पृ० ६६ नि० १३, १४ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001702
Book TitlePrakritmargopadeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1968
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size16 MB
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