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________________ ( २०४ ) वीतराग सभी जीवों को समान दृष्टि से देखता है। वाक्य (प्राकृत में) जहा जुन्नाई कढाई हबवाहो पमत्थति तहा जुन्ने दोसे समणो दहइ । जस्स मोहो हओ तस्स न होइ दुक्खं ।। शव्वेसि पाणाणं भूआणं दुक्खं महब्भयं ति बेमि । सव्वे पि पाणा न हंतव्वा एवं जे पडुप्पन्ना जिणा ने सव्वे वि आइक्खंति । जे एर्ग जाणइ से सव्वं जाणइ । पमत्तस्स सव्वतो भयं विज्जइ। इअ महावीरो भासते जस्स मोहो न होइ तस्स दुक्खं हयं । एगेसि भाणवाणं आउयं अप्पं खलु । अधीरेहिं पुरिसेहि इमे कामा न सुजहा । पुरिमाओ, दाहिणाओ उत्तराओ वा कत्तो आगओ त्ति न जाणइ जीवो। जे सव्वं जाणइ से एगं जाणइ । समो य जो सव्वेसु भूएसु स वीअरागो । जेहिं बद्धो जीवो संसारे परियट्टइ ते रागा य दोसा य कम्मबोअं । जेण मोहो हओ न सो संसारे परियट्टइ । सब्वे पाणा पियाउअ सुहमिच्छन्ति । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001702
Book TitlePrakritmargopadeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1968
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size16 MB
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