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________________ ( २०३ ) जो शरीर में आसक्त हैं वे मूढ़ हैं । संसार में राग और द्वेष अनादिकाल से हैं । मेघ सर्वत्र चारों ओर से बरसते हैं । हम दोनों जिसका कपड़ा सीते हैं वह राजा है । जैसे अग्नि लकड़ी को जलाती हैं वैसे ही महापुरुष अपने दोषों को जलाते हैं । प्रमादी पुरुष भय से काँपता है । उत्तर-पूर्व में शीत है और दक्षिण में ताप है । एक भी प्राणी मारने योग्य नहीं । सभी बालक गाते हैं । सभी किसान सर्दी और गर्मी सहन करते हैं । जो किसी प्राणी को मारता नहीं उसे हम ब्राह्मण कहते हैं । कौन कहाँ से आया है ? मनुष्य शरीर की कुशलता के लिए तप करते हैं । पण्डित लोग हर्ष से दुःख सहन करते हैं । सभी शिष्य आचार्य को मस्तक झुका कर प्रणाम करते हैं । मैं सभी के लिए चन्दन घिसता हूँ । जो आकुल-व्याकुल हो जाता है वह शूर नहीं । बद्ध और आसक्त पुरुष कर्मबीज़ से संसार में चक्र काटते हैं । हम दूसरों का कल्याण चाहते हैं । वह अपने दोषों को देखता है । हाथी से घायल किसान भय से काँपता है | तुम्हारे आँगन में सभी बालक खेलते हैं । जो मूढ़ शिष्य आचार्य के सामने झुकता नहीं वह दुःख सहन करता है | वीतराग पुरुष सबमें उत्तम ब्राह्मण है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001702
Book TitlePrakritmargopadeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1968
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size16 MB
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