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१. प्राकृत-भाषा में स्वरों का प्लुत-उच्चारण नहीं होता है। २. ऋ' तथा तृ स्वर का प्रयोग नहीं होता है । ३. ऐ२ तथा श्री स्वर का प्रयोग नहीं होता है।
व्यञ्जन
उच्चारण-स्थान
कण्ठ तालु
क ख ग घ ङ् च छ ज झ ञ् ट् ठ ड ढ ण त् थ् द् ध् न् प् फ् ब् भ् म्
( क वर्ग) (च वर्ग) (ट वर्ग) (त वर्ग) (प वर्ग )
मूर्धा
दन्त-दाँत अोष्ट-होठ
अन्तस्थअर्धस्वर
LAONLAN
तालु मूर्धा दन्त दन्त अोष्ठ
दन्त
कण्ठ य् ल व
नासिका ङ्ञ् ण न म् ४. प्राकृत-भाषा में कोई भी व्यञ्जन स्वर के बिना क् च ट त प
रूप से अकेला प्रयुक्त नहीं होता। जो व्यञ्जन समान-वर्ग अथवा
१. अपभ्रंश-प्राकृत में '' स्वर का उपयोग होता है। जैसे; तृण, सुकृत श्रादि।
२. केवल 'श्रयि' अव्यय के स्थान पर ही 'ऐ' का प्रयोग होता है। याने 'ए' सम्भावना अथवा कोमल सम्बोधन का सूचक है (हे.
प्रा० व्या० ८।१।१६६। )।
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