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________________ समान अाकार के होते हैं, वे बिना स्वर के भी संयुक्त रूप से प्रयुक्त होते हैं । समान वर्ग, जैसे :-चक्क, बच्छ, वट्टा, तत्त, पुप्फ, अङ्क, का' मञ्च, कण्ठ, तन्तु, चम्पग श्रादि । समान श्राकार, जैसे :-अय्य, कल्लाण, सच, सिसस इत्यादि। ५. किसी भी प्रयोग में अकेला स्वर सहित ङ अथवा दोहरा (संयुक्त) 'ङ' प्रयुक्त नहीं होता। ६. सामान्यतःक्य, त्र, प्ल, क्व,स्व ऐसे विजातीय संयुक्त व्यञ्जन प्राकृत भाषा में प्रयुक्त नहीं होते। लेकिन अपवादरूप से कुछ विजातीयसंयुक्त व्यञ्जन प्राकृत-अपभ्रंश, पालि और मागधी भाषा में प्रयुक्त होते हैं। इसके विषय में उदाहरण-सहित निर्देश व्यञ्जनविकार के प्रकरण में दिये गये हैं। ७. प्राकृत भाषा में श तथा ष और विसर्ग का प्रयोग बिलकुल नहीं है। ८. 'ल' व्यञ्जन का प्रयोग पालि तथा पैशाची भाषा में प्रचलित है। संस्कृत के किस संयुक्त अक्षर के स्थान पर प्राकृत में साधारणतः कौन-सा अक्षर प्रयुक्त होता है। उदाहरणों सहित उनका प्रयोग इस प्रकार है(१) स्क, क्त, क्य, क्र, क, ल्क, क्ल और क्व के स्थान पर शब्द के - १. शब्द के अन्दर 'ञ' का प्रयोग पालि, मागधी और पैशाची भाषा में प्रचलित है। २. अय्य ( आर्य) शब्द केवल शौरसेनी और मागधी में ही प्रयुक्त होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001702
Book TitlePrakritmargopadeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1968
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size16 MB
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