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वै०
( १२५ ) ३८. विभक्तिरहित प्रयोग :
प्रा. आर्द्व चर्मन ।
प्राकृत भाषा में भी अनेक लोहिते चर्मन् । सप्तमी का अप्रयोग । प्रयोग विभक्तिरहित ही परमे व्योमन् ।
पाये जाते हैं। -वै० प्र० ७।१।३६ ।। गय-षष्ठी का बहुवचन
बहुशत- , दळहा द्वितीया का अप्रयोग ।
वीळ
इत्यादि ।'
अभिज्ञ
-ऋ०वे० पृ० ४६४ तथा ४७२ म० सं० । ३९. समान अर्थयुक्त अव्यय :
प्रा० कुह (कुत्र)
कुह (कुत्र) न (उपमासूचक)
णं (उपमासूचक) -ऋ०० पृ० ७३३ म० सं०3 तथा निरुक्त पृ० २२०; तथा ऋ० वे० पृ० ४६०-४६२५२८ म० सं० । दिवेदिवे
दिविदिवि
-हे० प्रा०व्या०८।४।३६६। ४०. संधि का विकल्प :
प्रा० ईषा + अक्षो
पदयोसन्धिर्वा ज्या+इयम्
-हे, प्रा. व्या०८।१।५। पूषा + अविष्टु -वै०प्र० ६।१।१२६ ।
वै०
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