________________
३७.
( १२४ )
अकारांत शब्द में लगनेवाला प्रत्यय ईकारान्त में भी
लगता है :
वै०
नद्यैः
—ão ० प्र० ७।१।१०। पाणि० काशिका |
इस रूपमें अकारान्त में
लगनेवाला प्रत्यय ईकारांत
में भी लगा है ।
वै०
दैवा
उमा
वेनन्ता
:
द्विवचन का रूप बहुवचन के समान :
प्रा०
प्राकृतभाषा में द्विवचन होता ही नहीं है । द्विवचन के सब रूप बहुवचन के समान होते हैं- “ द्विवचनस्य बहुबचनम् " - हे० प्रा० व्या० ८|३|१३०
- ऋग्वेद पृ० १३६ - ६ ।
या
दिविस्पृशा
अश्विना
प्रा०
नदीहि - हे० प्रा० व्या० ८|३|१२४
इन्द्रावरुणा
-ऋ० सं० ७१८२।१।४ । मित्रावरुणा
Jain Education International
प्राकृत में अकारान्त में लगने वाले प्रत्यय ईकारांत में भी लगते हैं ।
हत्था
पाया
थणया
नयणा, इत्यादि ।
- वै० प्र० ७ ११३९ ।
सृण्या -- ' आकार: छन्दसि द्विवचनादेश: ' - तन्त्रवार्तिक पृ०
१५७, आनन्दाश्रम |
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org