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________________ न लोगो - अलोगो । न देवो - अदेवो । न आयारो - अणायारो । ( १०६ ) न इटुं - अट्टिं । नदि - अदि । न इत्थी - अणित्थी । ( जिस शब्द के आदि में स्वर हो वहीं 'अण' का प्रयोग करना चाहिए ) । प, अइ, अव, परि और नि आदि उपसर्गों के साथ संज्ञा शब्दों के समास को पादितप्पुरिस (प्रादि तत्पुरुष) समास कहते हैं । उग्गओ वेलं - उब्वेलो । निग्गओ कासीए - निक्कासि | पगतो आयरियो - पायरियो | संगतो अत्थो - समत्थो । अइक्कतो पल्लंकं - अइपल्लंको । पुणोपवुड्ढो ( पुनःप्रवृद्धः ), अंतभूम आदि भी इसी प्रकार समझना चाहिए | Jain Education International ३. बहुव्वीहि समास : इस समास में दो से भी अधिक पदों का उपयोग होता है । 'बहुव्वीहि ' यानी बहुत व्रीहि ( चावल ) हैं जिसके पास ऐसा जो कोई हो वह 'बहुव्वीहि ' कहलाता है | 'बहुव्वोहि' का जैसा अर्थ है वैसा ही इस समास द्वारा तैयार किये हुए शब्दों का अर्थ भी है । तात्पर्य यह है कि इस समास का पूर्वपद अधिकतर, विशेषणरूप अथवा उपमासूचक होता है और प्रथम - पद के पश्चात् आनेवाला पद विशेष्य रूप होता है और समास हो जाने पर जो एक संपूर्ण शब्द तैयार होता है वह भी किसी दूसरे का विशेषण हो होता है । इस समास में प्रयुक्त शब्द प्रधान नही होते, परन्तु उनसे पृथक् अन्य कोई अर्थ प्रधान होता है इसलिए इस समास को अन्यपदार्थ - प्रधान समास भी कहते हैं । उपर्युक्त 'बहुब्वीहि' पद का अर्थ ही इस बात को स्पष्ट करता है । जब इस समास में प्रयुक्त शब्द समान विभक्ति वाले हों तो उसे समानाधिकरण बहुव्वीहि समास कहते हैं और जब शब्द For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001702
Book TitlePrakritmargopadeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1968
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size16 MB
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