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________________ ( १०५ ) महंतो च सो रायो च - महारायो । कण्हो च सो पक्खो च- कण्हपक्खो । सुद्धो च सो पक्खो च- सुद्धपक्खो । कभी इस समास में दोनों विशेषण भी होते हैं । रत्तपीअं वत्थं - ( रक्तपीतं वस्त्रम्) । सी उन्हं जलं - (शीतोष्णं जलम् ) । कई बार पूर्वपद उपमासूचक होता है । चन्दो इव मुहं - चंदमुहं । घणो इव सामो- घणसामो । वज्ज इव देहो - वज्जदेहो ( वज्रदेहः) । कई बार अन्तिम पद उपमासूचक होता है । मूहं चंदो इव - मुहचंदो । जिणो इंदो इव-जिणेंदों । कई बार पूर्वपद केवल निश्चयबोधक होता है | संजम एव धणं - संजमधणं । तवोचिअ धणं-तवोधणं । पुण्णं चेअ पाहेज्ज - पुण्णपाहेज्जं ( पुण्यपाथेयम्) । कम्मधारय समास का प्रथमपद यदि संख्यासूचक हो तो उसको द्विगुसमास कहते हैं । नवहं तत्ताणं समाहारो - नवतत्तं । चउन्हं कसायाणं समूहो - चउक्सायं । तिन्हं लोआणं समूहो - तिलोई । तिन्हं लोगाणं समूहो -तिलोगं । अभाव या निषेधार्थक 'अ' अथवा 'अण' के साथ संज्ञा शब्दों के समास को नतप्पुरिस ( नञ् तत्पुरुष) समास कहते हैं । जैसे: Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001702
Book TitlePrakritmargopadeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1968
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size16 MB
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