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________________ ( १८ ) कांस्य-कास, कंस। . संमुख-समुह, संमुह । पांशु-पासु, पंसु । किंशुक-केसुअ, किंसुअ । कथम्-कथं, कह, कहं । सिंह-सीह, सिंघ । २२. अनुस्वार के बाद वर्ग के किसी भी व्यञ्जन के परे रहने पर विकल्प से वर्ग का पाँचवाँ अक्षर हो जाता है। जैसे:पंक-पङ्क, पंक कंड-कण्ड, कंड संख-सङ्क, संख संढ-सण्ढ, संढ अंगण-अङ्गण, अंगण अंतर-अन्तर, अंतर लंघण-लवण, लंघण पंथ-पन्थ, पंथ कंचुअ-कञ्चुअ, कंचुअ चंद-चन्द, चंद लंछण-लञ्छण, लंछण बंधु-बन्धु, बंधु अंजन-अजण, अंजण कंप-कम्प, कंप संझा-सञ्झा, संझा गुंफ-गुम्फ, गुंफ कंटअ-कण्टअ, कंटअ कलंब-कलम्ब, कलंब कंठ-कण्ठ,कंठ आरंभ-आरम्भ, आरंभ २३. कुछ शब्दों में दो पदों के बीच 'म्' का आगम हो जाता है । जैसे :अन्न + अन्न = अन्नम् अन्न-अन्नमन्न । एग + एग=एगम् एग-एग्गमेग । चित्त + आणंदिय=चित्तम् आणंदिय-चित्तमाणंदिय । - जहा + इसि = जहाम् इसि-जहामिसि । इह + आगअ = इहम् आगअ-इहमागअ । हट्टतुट्ठ + अलंकिअ = हट्ठ तुट्ठम् आलंकिय-हट्टतुट्ठमालंकिय । १. हे० प्रा० व्या० ८।१।३० । २. हे० प्रा० व्या० ८।३।१० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001702
Book TitlePrakritmargopadeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1968
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size16 MB
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