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________________ ( ६७ ) अपवादः-वणम्मि-वर्णमि, वणम्मि । १८. यदि पद के अन्तिम 'म्' के पश्चात् स्वर आ जाये तो उसका विकल्प से अनुस्वार होता है।' उसमम् + अजिअं = उसमं अजिअं, उसममजिअं । नगरम् + आग च्छइ = नगरं आगच्छइ, नगरमागच्छइ । १९: कुछ शब्दों के अन्तिम व्यञ्जन का अनुस्वार हो जाता है । जैसे:साक्षात्-सक्खं पृथक्-पिहं यत्-जं सम्यक-सम्म तत्-तं ऋधक्-इहं विष्वक्-वीसुं ऋधकक्-इहयं २०. ङ, अ, ण तथा न् के बाद व्यञ्जन परे रहने पर अनुस्वार हो जाता है। जैसे :शङ्ख-सङ्घ, संख। षण्मुख-छण्मुह, छमुह । कञ्चुक-कञ्चुअ, कंचुअ। सन्ध्या-संझा। २१. कुछ शब्दों में अनुस्वार का लोप हो जाता है । जैसे : विंशति-वीसा । एवम्-एवं-एव, एवं । त्रिंशत्-तीसा। नूनम्-नूनं-नूण, नूणं । संस्कृत-सक्कय (सं० सस्कृत) । इदानीम्-इआणिसंस्कार-सक्कार (सं०सस्कार)। इआणि, इआणि, मांस-मांस, मंस । दाणि, दाणि । मांसल-मासल, मंसल । किम्-किं, कि, किं । १. हे० प्रा० व्या० ८।१।२४ । २. हे० प्रा० व्या० ८।१।२४ । ३. हे० प्रा० व्या० ८।१।२५। ४. हे० प्रा० व्या० ८१।२८,२६ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001702
Book TitlePrakritmargopadeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1968
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size16 MB
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