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________________ ( ६५ ) • सादु + उदग-सादूदग। बहू + ऊसास-बहूसास । बहु + ऊसास बहूसास । ९. स्वर के बाद स्वर रहने पर पूर्वस्वर का लोप भी हो जाता नर + ईसर-नर + ईसर = नरीसर, नरेसर । तिदस + ईस-तिदस् + ईस=तिदसीस, तिदसेस । निसास + ऊसास-नीसास् + ऊसासनीसासूसास । रमामि + अहं-रमामहं । तम्मि + अंसहर तम्मंसहर । उवलभामि+ अहं = उवलभामहं । देविंद+ अभिवंदिअ = देविदभिवंदिअ । ददामि + अहं = ददामहं । ण+ एव = णेव । १०. जहाँ दो स्वर पास-पास आते हों वहाँ कई स्थानों पर पिछले पद के पहले स्वर का लोप हो जाता है। जैसे :फासे + अहियासए = फासे हियासए। बालो + अवरज्झइ = बालो वरज्झइ । एस्संति अणंतसो = एस्संति णंतसो । ११. सर्वनाम सम्बन्धी स्वर अथवा अव्यय सम्बन्धी स्वर पास-. पास आये हों तो दो में से किसी एक का लोप हो जाता है। जैसे :तुब्भे + इत्थ = तुब्भित्थ । जे + एत्थ = जेत्थ । अम्हे + एत्य = अम्हेत्थ । जइ + अहं = जइहं । जे+ इमे = जेमे । जइ + इमा = जइमा । ५. हे० प्रा० व्या० ८।१।१० । २. सिद्ध हे० सं० व्या० ११२।२७ ।, इस सूत्र से मिलता-जुलता यह नियम है। ३. हे० प्रा० व्या० ८।११४० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001702
Book TitlePrakritmargopadeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1968
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size16 MB
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