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९४ )
५. दो पदों में भी व्यञ्जन के लोप होने पर शेष स्वरों की सन्धि
नहीं होती' । जैसे :
निशाकर - निसा + अर = निसाबर । निसि + अर = निसिअर ।
रजनीकर - रयणी + अर = रयणीअर । रजनीचर- रयणी + अर = रयणीअर | निशाचर - निसा + अर
गन्धपुटी - गंध + उडी = गंधउडी ।
६.
'अ और आ' के बाद अ और आ रहने पर दीर्घ आकार हो जाता है | जैसे :
( अ + अ = आ । अ + आ आ । आ + अ = आ । आ + आ = आ । ) - जीव + अजीव = जीवाजीव ।
अ
विसम + आयव = विसमायव ( विषम + आतप ) |
निसार । निसि + अर
८. 'उ और ऊ' के बाद जाता है । जैसे :( उ + उ=ऊ । बहू + उदग - बहूदग ।
आ - गंगा + अहिवइ : गंगाहिवइ ।
जउणा + आणयण = जउणाणयण ( यमुना + आनयन ) । ७. 'इ और ई' के परे इ और ई हो तो दीर्घ ईकार हो जाता
है । जैसे :
।
( इ + इ = ई । इ + ई = ई इ - मुणि + इयर = मुनियर । पुहवी + दहि + ईसर = दहीसर ।
ई + इ = ई । ई + ई = ई | ) ईस = पुहवीस | पुहवी + इसि = पुहवीसि ।
उ तथा ऊ रहने पर दीर्घ ऊकार हो
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=
१. हे० प्रा० व्या० ८१११८ । १।२।१ । ३. सिद्ध हे० सं० व्या०
निसिअर ।
उ + ऊ=ऊ ऊ + उ = ऊ । ऊ + ऊ = ऊ । ) बहू + उपमा-बहूपमा ।
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२. ५. हे० सं० सिद्धहेम० ल० वृ० ११२ ११ ।
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