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________________ वि + ईअ = बीअ वि + इअ = बिइअ ( ९३) } द्वितीय ( दूसरा ) काहि } करेगा ( करिष्यति ) काहि + इ = काही १ "थ + इर = थेर ( वृद्ध = स्थविर ) च + उ + इस = चोद्दस ( चौदह चतुर्दश ) कुम्भ + आर = कुम्भार ( कुम्हार = कुम्भकार ) चक्क + आअ = चक्काअ ( चक्रवाक् = चकवा पक्षी ) सालाहण ( शालिवाहन राजा ) साल + आहण क्रियापद के स्वर की स्वर परे रहनेपर सन्धि नहीं होती है । जैसे : होइ + इह = होइ इह । सं० भवति + इह = भवति इह । ३. 'ई अथवा उ, ऊ' के पश्चात् कोई भी विजातीय स्वर आ जावे तो सन्धि नहीं होती । जैसे : - = -जाइ + अन्ध = जाइअंध ( जाति अन्ध-जात्यन्ध = जन्मान्ध ) ई - पुढवी + आउ पुढवीआउ ( पृथ्वी-प्राप = पृथ्वी और पानी ) उ-बहु + अट्ठि = बहुअट्ठिय ( बहुअस्थिक = बहुत-सी हड्डियोंवाला ) ऊ - बहू + अवगूढ = बहूअवगूढ ( वधू अवगूढ ) ४. 'ए और ओ' के बाद स्वर परे होने पर सन्धि नहीं होती । जैसे : ए - महावीरे + आगच्छइ । एगे + आया । एगे + एवं । ओ - अहो + अच्छरियं । गोयमो + आघवेइ । आलम + इहि । १. देखिये, पिछले उदाहरणों में नियम २७ के अन्तर्गत । २. हे० प्रा० व्या० ८।११८ । ३. हे० प्रा० व्या० ८११६ | ८१६ । ५. हे० प्रा० व्या० ८२११७। ४. हे० प्रा० व्या० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001702
Book TitlePrakritmargopadeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1968
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size16 MB
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