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स्थूल- थुल्ल, थूल । स्थाणु - खण्णु, खाणु । हूत - हुत्त, हू इत्यादि ।
आणाल
सामासिक शब्दों में द्विर्भाव : - आलानस्तम्भ - आणालक्खंभ, खंभ | कुसुमप्रकर - कुसुप्पयर, कुसुमपयर | देवस्तुतिदेव, देवथुइ | नदीग्राम - नइग्गाम, नइगाम ।
हरस्कन्द - हरक्खंद, हरखंद इत्यादि ।
जिस इकहरे व्यञ्जन के पूर्व दीर्घ अथवा अनुस्वार हो तो उसे द्वित्व नहीं होता है । जैसे :
क्षिप्त-छूढ का छुड्ढ नहीं होता है ।
स्पर्श - फास
फस्स "
यत्र - तंस
तस्स 37
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संध्या-संज्ञा संझा भी द्विर्भाव की प्रक्रिया है । देखिये पा० प्र०
( पालि भाषा में पृ० १०, नियम १२ । )
२७.
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शब्दों में विशेष परिवर्तन'
अयस्कार- एक्कार ! आश्चर्य -अच्छअर, अच्छरिअ, अच्छरिज्ज, अच्छरीअ । उदूखल - ओहल, उऊहल । उलूखल - ओक्खल, उलूहल | कमल-केल, कमल । कदलो - केली, कयली । कणिकार - कण्णेर, कणिआर, कण्णिआर । चतुर्गुण - चोग्गुण, चउग्गुण । चतुर्थ - चोत्थ, चउत्थ । चतुर्दश- चोट्स, चउद्दस । चतुर्वार- चोव्वार, चरव्वार । त्रयस्त्रिशत् - तेत्तीसा । त्रयोदश-तेरह |
( पालि में अच्छरिय, अच्छायर देखिये पा० प्र० पृ० ४४ टिप्पण । ) १. प्रा० व्या० ८।१।१६६, १६५, १६७, १६८, १७०, १७१, १७४, १७५ तथा ८|२|६६, ६७ ।
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