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________________ ( ८२ ) स्थूल- थुल्ल, थूल । स्थाणु - खण्णु, खाणु । हूत - हुत्त, हू इत्यादि । आणाल सामासिक शब्दों में द्विर्भाव : - आलानस्तम्भ - आणालक्खंभ, खंभ | कुसुमप्रकर - कुसुप्पयर, कुसुमपयर | देवस्तुतिदेव, देवथुइ | नदीग्राम - नइग्गाम, नइगाम । हरस्कन्द - हरक्खंद, हरखंद इत्यादि । जिस इकहरे व्यञ्जन के पूर्व दीर्घ अथवा अनुस्वार हो तो उसे द्वित्व नहीं होता है । जैसे : क्षिप्त-छूढ का छुड्ढ नहीं होता है । स्पर्श - फास फस्स " यत्र - तंस तस्स 37 27 17 17 संध्या-संज्ञा संझा भी द्विर्भाव की प्रक्रिया है । देखिये पा० प्र० ( पालि भाषा में पृ० १०, नियम १२ । ) २७. Jain Education International " 31 " 17 शब्दों में विशेष परिवर्तन' अयस्कार- एक्कार ! आश्चर्य -अच्छअर, अच्छरिअ, अच्छरिज्ज, अच्छरीअ । उदूखल - ओहल, उऊहल । उलूखल - ओक्खल, उलूहल | कमल-केल, कमल । कदलो - केली, कयली । कणिकार - कण्णेर, कणिआर, कण्णिआर । चतुर्गुण - चोग्गुण, चउग्गुण । चतुर्थ - चोत्थ, चउत्थ । चतुर्दश- चोट्स, चउद्दस । चतुर्वार- चोव्वार, चरव्वार । त्रयस्त्रिशत् - तेत्तीसा । त्रयोदश-तेरह | ( पालि में अच्छरिय, अच्छायर देखिये पा० प्र० पृ० ४४ टिप्पण । ) १. प्रा० व्या० ८।१।१६६, १६५, १६७, १६८, १७०, १७१, १७४, १७५ तथा ८|२|६६, ६७ । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001702
Book TitlePrakritmargopadeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1968
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size16 MB
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