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२५.
२६.
'क्ष' को 'ह'
'ख'
'प'
39
33
"
'ह'
'हम' को 'ह'
33
'ह'
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( ८१ )
१
दक्षिण - दाहिण, दक्खिण ।
दुःख - दुह, दुक्ख । दुःखित - दुहिअ, दुक्खअ ।
बाष्प - बाह ( अ
- अंसु गू०, आँसू ) तथा बाष्प
बप्फ ( =भाफ )
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।
कुष्माण्ड - कोहण्ड । कुष्माण्डी - कोहंडी ।
दीर्घ - दीह, दिग्घ ।
तीर्थ - तूह, तित्थ ।
कार्षापण - काहापण ।
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"
( देखिये- पा० प्र० पृ० ८, दुःख - दुक्ख )
૨
द्विर्भाव'
और 'ह' को छोड़कर इकहरे व्यञ्जन को द्वित्व अपर नाम द्विर्भाव है । यह द्विर्भाव कुछ
कुछ शब्दों में 'र' हो जाता है । द्वित्व का ही शब्दों में नित्य होता है और कुछ में वैकल्पिक । नित्य द्विर्भाव : - ऋजु - उज्जु । तैल- तेल्ल । प्रभूत - बहुत्त । प्रेमपेम 1 मण्डूक-मंडुक्क । यौवन- जुव्वण । विचकिल - बेइल्ल । व्रीडा - विड्डा इत्यादि ।
वैकल्पिक द्विर्भाव :- एक -एक्क, इक्क, एअ, एग। कर्णिकार - कण्णिआर, कणिआर । कुतूहल - कोउहल्ल, को उहल |
चैव. -
चिअ चिचअ, चिअ ।
1
चैव-चेअ, च्चेअ, तुहिक । दैव-दइव्य
तुष्णीक - तुहिक्क,
नख - नक्ख, नह । निहित- निहित्त, निहिअ । नेड्डु, नीड | मूक - मुक्क, मूअ । सेवा - सेव्वा, सेवा ।
१. हे० प्रा० व्या० ८।२।७२, ७०, ७३, ६१, ७१ । २. हे० प्रा० व्या० ८२८६, ६५, ६८, ९७, ६२, ८।१।२२ |
चेअ ।
दइव ।
नीड
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