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भूमिका
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का दर्शन करना कल्याणकारी होता है, उनके प्रति शुभभाव रखने से शुभकर्मों का अनुबन्ध होता है । अत: जिनबिम्ब बनवाना मनुष्य का कर्तव्य है
और यही मनुष्य जन्म की सार्थकता है । आचार्य हरिभद्र के अनुसार जिनबिम्ब निर्माण करवाने वाले के लिये यह आवश्यक है कि वह किसी निर्दोष चरित्र वाले शिल्पी से ही बिम्ब का निर्माण करवाए और उसे पर्याप्त पारिश्रामिक दे। यदि निर्दोष चरित्र वाला शिल्पी नहीं मिलता है और दूषित चरित्र वाले शिल्पकार से जिनबिम्ब का निर्माण करवाना पड़े तो उसका पारिश्रमिक पूर्व ही निर्धारित कर देना चाहिये। उसे वह धनराशि भी अनाज आदि के रूप में दे ताकि वह उसे पापकर्म में खर्च न कर सके। यदि ऐसा नहीं होता है तो दूषित चरित्रवाला शिल्पी उस धनराशि से पापरूप प्रवृत्तियों में संलग्न रहता है और फलतः अनन्त भवभ्रमण करते हुए उस निमित्त दारुण दुःख को भोगता है । इसलिये ऐसे शिल्पी को खाद्यान्न आदि के रूप में पारिश्रमिक निर्धारित किये बिना नियुक्त नहीं करना चाहिये। जिस प्रकार किसी अत्यन्त बीमार व्यक्ति को अपथ्य भोजन देना उचित नहीं है, उसी प्रकार भली-भाँति विचारकर जो कार्य का परिणाम किसी के लिये दारुण दुःख का कारण हो वह करणीय नहीं होता। अत: जिन-आज्ञानुसार कार्य करना सराहनीय होता है। यदि अज्ञानवश कभी भूल से आज्ञा के विपरीत कार्य हो भी जाता है तो करने वाला दोषी नहीं समझा जाता है, क्योंकि वह आज्ञा का आराधक होता है और उसका परिणाम शुद्ध होता है। आज्ञानुसार प्रवृत्ति करने वाले को तीर्थङ्कर के प्रति बहुमान होता है और तीर्थङ्कर के प्रति बहुमान होने के कारण उसके परिणाम (मनोभाव) शुद्ध होते हैं । साधु या श्रावक से सम्बन्धित कोई भी प्रवृत्ति यदि अपनी मति के अनुसार की जाती है, तो वह आज्ञारहित होने से संसार का निमित्त होती है। अत: मोक्षाभिलाषी को जिन की आज्ञानुसार ही प्रयत्न या पुरुषार्थ करना चाहिये।
इस प्रकार भलीभाँति निर्मित जिनबिम्ब की शुभ मुहूर्त में चन्दनादि का विलेपन करके मांगलिक गीतों के बीच विधिपूर्वक स्थापना करनी चाहिये। उसके चारों ओर स्वर्ण-मुद्रा, रत्न तथा जल से परिपूर्ण चार कलश जिनमें पुष्प और कच्चे धागे बँधे हों, रखकर बिम्ब के समक्ष गन्ने के टुकड़े, मिष्ठान्न, जौ, चन्दन आदि का स्वस्तिक बनाकर घी, गुड़ आदि से युक्त मंगलदीप प्रज्वलित करना चाहिये। इतनी क्रिया हो जाने के पश्चात् प्रतिमा के हाथ में मांगलिक कंकन बाँधकर उत्तम वस्त्र धारण कराकर अधिवासित जिनबिम्ब का चार पवित्र नारियों द्वारा प्रोङ्खन करना चाहिये। यह कहा जाता है कि प्रोडन करने वाली स्त्रियों को कभी भी वैधव्य और दारिद्र्य
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