SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 410
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सप्तदश ] स्थितास्थितकल्पविधि पञ्चाशक पहले योग्य बन जाये तो उसकी बड़ी दीक्षा में थोड़ा विलम्ब करके पिता के योग्य बन जाने पर पिता-पुत्र की बड़ी दीक्षा एक साथ करनी चाहिए, अन्यथा पिता आदि को असमाधि होती है। यदि ज्यादा अन्तर हो तो पिता को समझाना चाहिए, कि आपका पुत्र बड़ी दीक्षा के योग्य हो गया है, उसे बड़ी दीक्षा ले लेने दीजिए। इसमें आपका भी उत्कर्ष है । इस प्रकार समझाने पर भी यदि न मानें तो जहाँ तक हो सके प्रतीक्षा करनी चाहिए। दो राजा आदि एक साथ दीक्षा लें तो जो राजा आचार्य के निकट हो वह ज्येष्ठ होता है। इस प्रकार सामायिक चारित्र ( छोटी दीक्षा) और उपसम्पदा (बड़ी दीक्षा) • दोनों तरह से ज्येष्ठ कल्प सभी (प्रथम, अन्तिम और मध्य के जिनों के) साधुओं का स्थित कल्प है ।। ३१ ।। प्रतिक्रमण का स्वरूप जिनस्य । सक्किमणो धम्मो पुरिमस्स य पच्छिमस्स य जिणस्स । मज्झिमगाण जिणाणं कारणजाए पडिक्कमणं ॥ ३२ ॥ गमणागमणविहारे सायं पाओ य पुरिमचरिमाणं । णियमेण पडिक्कमणं अइयारो होउ वा मा वा ।। ३३ ।। मज्झिमगाण उ दोसे कहंचि जायम्मि तक्खणा चेव । दोसपडियारणाया गुणावहं तह पडिक्कमणं ॥ ३४ ॥ सप्रतिक्रमणो धर्मः पूर्वस्य च पश्चिमस्य च मध्यमकानां जिनानां कारणजाते गमनागमनविहारे सायं प्रातश्च नियमेन प्रतिक्रमणम् अतिचारो भवतु मध्यमकानां तु दोषे कथञ्चिज्जाते दोषप्रतिकार ज्ञाताद् गुणावहं तथा प्रतिक्रमणम् ॥ ३४ ॥ प्रथम और अन्तिम जिनों के साधुओं को सुबह-शाम छह आवश्यक रूप प्रतिक्रमण अवश्य करना चाहिए। मध्य के जिनों के साधुओं को दोष लगे तब प्रतिक्रमण करना चाहिए। दोष न लगने पर मध्य के जिनों के साधुओं को प्रतिक्रमण करना आवश्यक नहीं है ।। ३२ ॥ प्रतिक्रमणम् ॥ ३२ ॥ पूर्वचरमाणाम् । वा मा वा ।। ३३ ।। तत्क्षणात् चैव । ጉ ३०५ प्रथम और अन्तिम जिनों के साधुओं को अतिचार लगे या न लगे गमन ( आहारादि के लिए उपाश्रय से बाहर निकलना), आगमन ( आहारादि लेकर उपाश्रय में आना) और विहार ( एक गाँव से दूसरे गाँव को जाना) में ईयापथ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001701
Book TitlePanchashak Prakaranam
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorSagarmal Jain, Kamleshkumar Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1997
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Religion, & Ritual
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy