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पञ्चदश ]
आलोचनाविधि पञ्चाशक
योग अर्थात् मन का निरोध । प्रणिधान ( एकाग्रता ) और मनोनिरोध से युक्त प्रणिधानयोगयुक्त।
जो जीव पाँच समितियों और तीन गुप्तियों में प्रणिधान और योग से युक्त है, वह आठ प्रकार के चारित्राचार वाला है।
अथवा 'युक्त' शब्द का समिति और गुप्ति के साथ अन्वय करने पर अर्थ होगा - प्रणिधान और योग से युक्त अर्थात् पाँच समिति और तीन गुप्ति से ऐसा व्यक्ति आठ प्रकार के चारित्राचार वाला होता है। चारित्र से सम्बन्धित आचार-व्यवहार चारित्राचार है ।। २५ ।।
युक्त
Fawa
तपाचार के भेद
तवाया ।। २६ । कुशलदृष्टे ।
तपाचारः ।। २६ ।।
बारसविहम्मिवि तवे साब्भिंतरबाहिरे कुसलदिट्ठे । अगिलाऍ अणाजीवी णायव्वो सो द्वादशविधेऽपि तपसि साभ्यन्तरबाह्ये अग्लान्या अनाजीवी ज्ञातव्य: स जो जीव सर्वज्ञप्ररूपित छः प्रकार के आभ्यन्तर और छः प्रकार के इस प्रकार बारह प्रकार के तपों में खेदरहित निःस्पृह रूप से प्रवृत्ति करता है वह जीव बारह प्रकार का तपाचार है। यहाँ आचार और आचारवान् में अभेद होने के कारण जीव को ही तप कहा गया है। तप सम्बन्धी व्यवहार तपाचार है || २६ ॥
बाह्य
२६७
वीर्याचार के भेद
अणिगूहियबलविरिओ परक्कमइ जो जुंजइ य जहत्थामं णायव्वो अनिगूहितबलवीर्यः पराक्रमते यो युंक्ते च यथास्थामं ज्ञातव्यो वीर्याचार: ।। २७ ।। जो जीव बल और वीर्य को छिपाये बिना आगम के अनुसार धर्मक्रिया
यथोक्तमायुक्तः ।
में प्रवृत्ति करता है और शक्ति का उल्लंघन किये बिना आत्मा को धर्मक्रिया में जोड़ता है वह जीव वीर्याचार है (यहाँ भी जीव और आचार के अभेद से जीव को ही आचार कहा गया है ) ।। २७ ।
उपर्युक्त आचारों की योजना
एम्म उ अइयारा अकालपढणाइया णिरवसेसा ।
अपुणकरणुज्जएणं
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जहुत्तमाउत्तो । वीरियायारो ।। २७ ।।
संवेगाऽऽलोइयव्वत्ति ॥ २८ ॥
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