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पञ्चाशकप्रकरणम्
[चतुर्दश
प्रकरण का उपसंहार इय णियबुद्धिएँ इमं आलोएऊण एत्थ जइयव्वं । अच्चंत - भावसारं भवविरहत्थं महजणेणं ॥ ५० ॥ इति निजबुद्ध्या इदमालोच्य अत्र यतितव्यम् । .. अत्यन्त - भावसारं भवविरहार्थं महाजनेन ।। ५० ।।
इस प्रकार विशिष्ट लोगों को स्व-विवेकपूर्वक उक्त प्रकार से विचार करके संसार-सागर से मुक्त होने के लिए भावयुक्त क्रिया करनी चाहिए ।। ५० ।।
॥ इति शीलाङ्गविधानविधिर्नाम चतुर्दशं पञ्चाशकम् ॥
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