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________________ चतुर्दश] शीलाङ्गविधानविधि पञ्चाशक २५५ २५५ द्रव्यलिंगधारी क्रियाबल से दु:ख का नाश नहीं कर सकते संपुण्णावि हि किरिया भावेण विणा ण होतिकिरियत्ति । णियफलविगलत्तणओ गेवेज्जुववायणाएणं ।। ४७ ॥ आणोहेणाणंता मुक्का गेवेज्जगेसु उ सरीरा । ण य तत्थासंपुण्णाएँ साहुकिरियाएँ उववाओ ।।.४८ ।। ता पंतसोऽवि पत्ता एसा ण उ दंसणंपि सिद्धति । एवमसग्गहजुत्ता एसा ण बुहाण इट्ठत्ति ।। ४९ ।। सम्पूर्णाऽपि हि क्रिया भावेन विना न भवति क्रियेति । निजफलविगलत्वतो ग्रैवेयकोपपातज्ञातेन ।। ४७ ।। आज्ञौघेनानन्तानि मुक्तानि |वेयकेषु तु शरीराणि । न च तथासम्पूर्णया साधुक्रियया उपपातः ।। ४८ ।। तदनन्तशोऽपि प्राप्ता एषा न तु दर्शनमपि सिद्धमिति । एवमसद्ग्रहयुक्ता एषा न बुधानामिष्टेति ।। ४९ ।। मुनि-धर्म पालन रूप सम्पूर्ण क्रिया भी सम्यक्त्व आदि प्रशस्त भावों के अभाव में सम्यक् क्रिया नहीं बनती है, क्योंकि वह क्रिया अपने मोक्षरूपी फल से रहित है। इससे ग्रैवेयक में उपपात (उत्पत्ति) तो सम्भव है, किन्तु मुक्ति नहीं, अर्थात् ग्रैवेयक में उत्पत्ति रूप मोक्ष फलरहित क्रिया परमार्थ से क्रिया नहीं है - यह सिद्ध होता है, क्योंकि ग्रैवेयक में उत्पत्ति संसार-परिभ्रमण का ही हेतु है, मोक्ष का नहीं ।। ४७ ।। ___ वह इस प्रकार है - सम्यग्दर्शन से रहित केवल बाह्याचार का पालन करके जीव ने अनेक बार ग्रैवेयक विमानों में जन्म लेकर शरीर छोड़े हैं, क्योंकि सम्पूर्णतया साधु-आचार का पालन किये बिना ग्रैवेयक विमानों की उत्पत्ति नहीं होती है ॥ ४८ ॥ इससे यह सिद्ध होता है कि सम्पूर्ण साधु-आचार का पालन जीव ने अनन्त बार किया है, तभी तो ग्रैवेयक विमानों में उत्पन्न होकर जीव ने अनन्तबार उन देव-शरीरों को छोड़ा है फिर भी मोक्ष के कारणभूत सम्यक्त्व की प्राप्ति नहीं होने से मोक्ष प्राप्त नहीं हुआ, क्योंकि यदि सम्यक्त्व की प्राप्ति हुई होती तो अनन्त बार साधु-जीवन की प्राप्ति और अनन्त बार ग्रैवेयक विमानों में उत्पत्ति नहीं होती। इन्हीं कारणों से सम्यक्त्व आदि शुद्धभावों से रहित (प्रशस्तभाव रहित) निरर्थक क्रिया बुद्धिमानों को अभिमत नहीं है ।। ४९ ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001701
Book TitlePanchashak Prakaranam
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorSagarmal Jain, Kamleshkumar Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1997
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Religion, & Ritual
File Size24 MB
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