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चतुर्दश ]
शीलाङ्गविधानविधि पञ्चाशक
मार्गानुसारी प्रदक्षिणा गम्भीरो गुरुकस्तथा भवति । क्रोधाग्रिना अदाह्योऽकुत्स्यः सदा
शीलभावेन || ३४ ॥
सुवर्ण की ही तरह साधु भी १. विषघाती : जीवों के मोहरूपी विष के नाशक होते हैं, २. रसायन : मोक्षमार्ग का उपदेश देकर अजर-अमर बनाते हैं, ३. मंगलार्थ : अपने गुणों से मंगलकारी होते हैं, ४. विनीत : स्वभाव से ही विनयी हैं, ५. प्रदक्षिणावर्त : तात्त्विक मार्गानुसारी, ६. अदाह्य : क्रोधाग्नि से जलते नहीं, ७. गुरुक : गम्भीर होते हैं, ८. अकुत्स्य : सदा शील रूप सुगन्ध वाले होते हैं, इसलिए कभी दुर्गुणरूपी दुर्गन्ध उनमें नहीं होती है ।। ३३-३४ ।।
उपर्युक्त विषय की योजना
एवं दिट्ठतगुणा सज्झम्मिवि एत्थ होति ण हि साहम्माभावे पायं जं होइ
ज्ञातव्याः ।
एवं दृष्टान्तगुणाः साध्येऽपि अत्र भवन्ति न हि साधर्म्याभावे प्रायो यद्भवति दृष्टान्तः ॥ ३५ ॥
णायव्वा । दिट्ठतो ॥ ३५ ॥
सुवर्ण के विषघाती आदि गुण तात्त्विक साधु रूप साध्य में भी होते हैं, क्योंकि प्रायः साधर्म्य के अभाव में दृष्टान्त नहीं बनता ) ( कभी वैधर्म्य में भी दृष्टान्त होता है, इसीलिए 'प्राय:' शब्द प्रयुक्त हुआ है ) ।। ३५ ।।
किस प्रकार के सोने में उक्त आठ गुण होते हैं ? चउकारणपरिसुद्धं कसच्छेयतावतालणाए य ।
जं तं विसघाति- रसायणादि-गुणसंजुयं होइ ।। ३६ ।। कषच्छेदतापताडनया
च ।
चतुष्कारण- परिशुद्धं यत्तद्विषघाति-रसायनादि-गुणसंयुतं
भवति ।। ३६ ।
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= काटना, ताप =
अग्नि में
जो सोना कष = कसौटी पर घिसना, छेद तपाना और ताड़ना-पीटना • इन चार कारणों से शुद्ध सिद्ध हुआ हो वही सोना विषघात, रसायन आदि आठ गुणों से युक्त होता है। उक्त परीक्षाओं से शुद्ध सिद्ध न हुए सोने में उक्त आठ गुण नहीं होते हैं ॥ ३६ ॥
तत्त्विक साधु में उपर्युक्त कष आदि का घटन इयरम्मि कसाईया विसिटुलेसा तहेगसारत्तं । अवगारिणि अणुकंपा वसणे अइणिच्चलं चित्तं ॥ ३७ ॥ इतरस्मिन् कषादयों विशिष्टलेश्या तथैकसारत्वम् । अपकारिणि अनुकम्पा व्यसने अतिनिश्चलं चित्तम् ॥ ३७ ॥
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