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________________ चतुर्दश ] __ शीलाङ्गविधानविधि पञ्चाशक २४९ तत् संसारविरक्तोऽनन्त-मरणादिरूपमेतत्तु । ज्ञात्वा एतद्वियुक्तं मोक्षं च गुरूपदेशेन ।। २५ ।। परमगुरोश्च अनघान् आज्ञाया गुणान् तथैव दोषांश्च । मोक्षार्थी प्रतिपद्य भावेन इदं विशुद्धेन ।। २६ ।। विहितानुष्ठानपरः शक्त्यनुरूपमितरदपि सन्धयन् । अन्यत्र अनुपयोगात् क्षपयन् कर्मदोषानपि ।। २७ ।। सर्वत्र निरभिष्वङ्ग आज्ञामात्रे सर्वथा युक्तः । एकाग्रमनाः धनिकं तस्मिन् तथाऽमूढलक्षश्च ।। २८ ।। तथा तैलपात्रीधारकज्ञातगत राधावेधकगतो वा ।। एतच्छक्नोति कर्तुं न त्वन्यः क्षुद्रसत्त्व इति ॥ २९ ।। ऐसे शील का पालन कठिन होने से जो गुरु के उपदेश से संसार को अनन्त जन्म-मरण का हेतु जानकर और मोक्ष को जन्म-मृत्यु के रहित जानकर संसार विरक्त बना हो, जो जिनाज्ञा की आराधना में निरवध उपकारों और अपकारों को जानकर मोक्षार्थी बना हो, जिसने इस चारित्र को नि:शंक होकर विशुद्धभाव से स्वीकार किया हो और शक्ति के अनुरूप आगमोक्त क्रियाओं में उद्यत हो, साथी ही जिन क्रियाओं में असमर्थ हो उन्हें भाव से करता हो और जो क्रियाएँ आगमोक्त नहीं हैं उन्हें नहीं करता हो, जो कर्म दोषों को निर्जरित करते हुए सर्वत्र (द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव में) अप्रतिबद्ध, केवल आज्ञा में उद्यत, एकाग्रचित्त का स्वामी, आज्ञा में अमूढलक्ष हो (आज्ञा सम्बन्धी सुनिश्चित बोध वाला हो), प्रमाद से नुकसान होगा ऐसा जानने से तैलपात्र धारक (मृत्यु के भय से तेल भरा कटोरा लेकर नगर में घूमने वाला) और राधावेधक (उपद्रवों की चिन्ता किये बिना पुतली की आँख को वेधने वाले) की तरह अत्यधिक अप्रमत्तपूर्वक रहे, वही यह चारित्र पालने में समर्थ होता है, दूसरा नहीं। क्योंकि दूसरे क्षुद्र जीवों में ऐसी शक्ति नहीं होती है ।। २५-२९ ॥ --'--.-". __प्रस्तुत प्रकरण में उक्त विषय की योजना एत्तो चिय णिद्दिटुं पुव्वायरिएहिँ भावसाहुत्ति । हंदि पमाणठियट्ठो' तं च पमाणं इमं होइ ।। ३० ।। सत्युत्तगुणो साहू ण सेस इह णे पइण्ण इह हेऊ । अगुणत्ता इह णेओ दिटुंतो पुण सुवण्णं व ॥ ३१ ॥ १. 'ठियत्थो' इति पाठान्तरम्। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001701
Book TitlePanchashak Prakaranam
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorSagarmal Jain, Kamleshkumar Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1997
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Religion, & Ritual
File Size24 MB
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