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पञ्चाशकप्रकरणम्
[चतुर्दश
योग, करण, संज्ञा, इन्द्रिय, भूमि आदि और श्रमणधर्म – ये सब मिलकर शील के अट्ठारह हजार भेद होते हैं ।। ३ ।।
योगादि का स्वरूप करणादि तिण्णि जोगा मणमादीणि उ हवंति करणाई । आहारादी सण्णा चउ सोया इंदिया पंच ॥ ४ ॥ भोमादी णव जीवा अजीवकाओ उ समणधम्मो उ। खंतादि दसपगारो एव ठिए भावणा एसा ॥ ५ ॥ करणादय: त्रयो योगा मन आदीनि तु भवन्ति करणानि । आहारादयः संज्ञा चतस्रः श्रोत्रादीन्द्रियाणि पञ्च ॥ ४ ॥ भूम्यादयः नव जीवा अजीवकायस्तु श्रमणधर्मस्तु । क्षान्त्यादिः दशप्रकार एव स्थिते भावना एषा ।। ५ ।।
योग - करना, कराना और अनुमोदन करना, करण - मन, वचन और काय, संज्ञा – आहार, भय, मैथुन और परिग्रह ये चार संज्ञायें क्रमश: वेदनीयकर्म, भय, मोह और लोभ कषाय के उदय से होने वाले अध्यवसाय विशेषरूप हैं। इन्द्रिय - श्रोत्र, चक्षु, नासिका, रसना और स्पर्श ।। ४ ।।
पृथ्वीकायिकादि - पृथ्वी, अप, तेज, वायु, वनस्पति, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, पञ्चेन्द्रिय - ये नौ जीवकाय और दसवाँ अजीवकाय (इनकी हिंसा और संग्रह को सर्वज्ञों ने त्याज्य कहा है)। अजीवकाय निम्नाङ्कित हैं - अधिक मूल्यवान वस्त्र, पात्र, सुवर्णादि धातुएँ, जिनकी प्रतिलेखना न हो सके - ऐसे ग्रन्थ, वस्त्र, तूल, प्रावारक आदि, कोदों आदि का पुआल, बकरी आदि का चर्म। श्रमणधर्म - क्षमा, मार्दव, आर्जव, मुक्ति (सन्तोष), तप, संयम, सत्य, शौच, आकिञ्चन्य और ब्रह्मचर्य ।। १० ।।
इन शीलाङ्गों की कुल संख्या इस प्रकार है - योग ३ x करण ३ x संज्ञा ४ x इन्द्रिय ५ x पृथ्वीकायादि १० x श्रमणधर्म १० = १८,०००। इनका विवरण गाथा संख्या ६ से ९ तक बतलाया जायेगा।
शील के अठारह हजार भेदों का विवरण ण करति मणेणाहारसण्णाविप्पजढगो उ णियमेण । सोइंदियसंवुडो पुढविकायआरंभ खंतिजुओ ॥ ६ ॥
१. 'सण्णा ' इति पाठान्तरम्। २. 'करेति' इति पाठान्तरम्।
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