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________________ त्रयोदश ] पिण्डविधानविधि पञ्चाशक २३९ गृहिसाधूभयप्रभवा उद्गम उत्पादनैषणादोषाः । एते तु मंडल्या ज्ञेया संयोजनादिका: ।। ४७ ।। उद्गम दोष गृहस्थ से, उत्पादन दोष साधु से और एषणा दोष गृहस्थ और साधु इन दोनों से होते हैं। उद्गमादि गृहस्थ आदि से क्यों होता है - इसका विवेचन किया गया। अब संयोजन आदि भोजन मण्डली में होने वाले दोष कहे जा रहे हैं, उन्हें जानना चाहिए ।। ४७ ।। भोजन मंडली के पाँच दोष संयोजणा पमाणे इंगाले धूम कारणे चेव । उवगरण भत्तपाणे सबाहिरब्भंतरा पढमा ।। ४८ ॥ संयोजना प्रमाणमंगारो धूमः कारणं चैव ।। उपकरणे भक्तपाने सबाह्याभ्यन्तरा प्रथमा ।। ४८ ॥ संयोजन, प्रमाण, अंगार, धूम और कारण -- ये पाँच भोजन-मंडली के अर्थात् भोजन करते समय के दोष हैं। १. संयोजना अर्थात् आहारादि में विशेषता लाने के लिए आहार को स्वादिष्ट बनाने-करने के लिए अन्य द्रव्यों का संयोग करना। इस प्रथम भेद संयोजना के उपकरण और आहार - ये दो भेद हैं। पुनः इन दोनों के बाह्य और आभ्यन्तर - ये दो-दो भेद हैं। (क) उपकरण संयोजना — विभूषा के लिए चोल पट्टा आदि उपकरण माँगकर बाहर पहिनकर दिखाना बाह्य उपकरण संयोजना और उपाश्रय आदि में में पहिनना आभ्यन्तर उपकरण संयोजना है। (ख) आहार संयोजना – भिक्षार्थ घूमते समय दूध, दही आदि मिलने पर उन्हें अपने भोजन में स्वाद बढ़ाने के लिए लेना बाह्य आहार संयोजना और भोजन करते समय उन्हें स्वाद हेतु मिलाना आभ्यन्तर आहार संयोजना है। २. प्रमाण - परिमाण से अधिक भोजन करना । ३. अंगार – चारित्र रूपी काष्ठ को अंगारे अर्थात् कोयले के समान करना । ४. धूम - चारित्र रूपी काष्ठ को धूमयुक्त अर्थात् मलिन करना । ५. कारण- अकारण भोजन करना ।। ४८ ॥ प्रमाण आदि चार दोषों का लक्षण बत्तीस कवलमाणं रागद्दोसेहिं धूमइंगालं । वेयावच्चादीया कारणमविहिमि अइयारो ।। ४९ ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001701
Book TitlePanchashak Prakaranam
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorSagarmal Jain, Kamleshkumar Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1997
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Religion, & Ritual
File Size24 MB
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