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________________ त्रयोदश ] पिण्डविधानविधि पञ्चाशक इस प्रकार - विशेष ( श्रमण को देने के संकल्प - विशेष ) से ही आहार तैयार होता है। जबकि साधु की भिक्षा अकृत असंकल्पित है। विशेषरूप से (साधु को देने के संकल्प से) बनाया हुआ भोजन दोष वाला होता है यह युक्तियुक्त है, किन्तु असंकल्पित गुणवाली भिक्षा युक्तियुक्त नहीं है, क्योंकि वैसा आहार होता नहीं है ॥ ३६ ॥ - उपर्युक्त मत का समाधान भणति विभिण्णविसयं देयं अहिगिच्च एत्थ विण्णेओ । उद्देसिगादिचाओ ण सोवि आरंभविसओ भण्यते विभिन्नविषयं देयमधिकृत्य औद्देशिकादित्यागो न स्वोचित अत्र विज्ञेयः । आरम्भविषयस्तु ।। ३७ ।। उपर्युक्त मत का समाधान इस प्रकार है गृहस्थ ने अपने आहार के अतिरिक्त श्रमण के लिए अलग आहार बनाने का संकल्प करके आहार बनाया हो तो ऐसे औद्देशिक, मिश्रजात आदि आहार का साधु को त्याग करना चाहिए, किन्तु श्रमण को देने के संकल्प सहित अपने लिए आहार बनाया हो तो ऐसे औद्देशिक आहार का त्याग नहीं है अर्थात् गृहस्थ ने अपने ही आहार में से श्रमण को देने का संकल्प किया हो तो ऐसे आहार में औद्देशिक आदि दोष नहीं लगते हैं। इसलिए उसका त्याग नहीं किया जाता है ।। ३७ ।। ------- Jain Education International २३५ गृहस्थ केवल अपने लिए आहार बनायें यह सम्भव है संभवइ य एसोऽवि हु केसिंची अविसेसुवलंभाओ तत्थवि तह सम्भवति च एषोऽपि खलु केषाञ्चित् सूतकादिभावेऽपि । अविशेषोपलम्भात् तत्रापि तथा लाभसिद्धेः ॥ ३८ ॥ - उ ।। ३७ ।। सूयगादिभावेऽवि । लाभसिद्धीओ ।। ३८ ॥ सभी गृहस्थ केवल पुण्य के लिए आहार बनाते हों ऐसा नहीं है। कुछ अपने परिवार भर के लिए ही आहार बनाते हैं, क्योंकि कुछ विशिष्ट लोगों के घरों में सूतक (जन्म, मृत्यु) के समय भी अन्य दिनों की तरह ही आहार बनता है। अन्य दिनों से कम नहीं बनता है, क्योंकि सूतकादि के समय दान नहीं दिया जाता है । यदि सामान्य दिनों में दान देने के संकल्प से अधिक भोजन बनाया जाता तो सूतकादि के समय कम भोजन बनना चाहिए, किन्तु ऐसा नहीं होता है, इसलिए यह सिद्ध हुआ कि कुछ घरों में अपने परिवार को जितना चाहिए उतना ही आहार बनता है और उसी में से दान भी दिया जाता है ॥ ३८ ॥ यहाँ ३६वीं गाथा में उठाये गये प्रश्न का समाधान ३७वीं एवं ३८वीं For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001701
Book TitlePanchashak Prakaranam
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorSagarmal Jain, Kamleshkumar Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1997
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Religion, & Ritual
File Size24 MB
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