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________________ पञ्चाशकप्रकरणम् [ त्रयोदश विशेष : जो दूषित आहार शुद्ध आहार में पड़ जाये बाद में उस दूषित आहार को निकाल लिया तो भी बाकी का आहार अशुद्ध ही रहे, शुद्ध नहीं बने तो यह अविशुद्ध कोटि का दोष है। जो दूषित आहार शुद्ध आहार में पड़ने के बाद उसमें से सम्पूर्ण दूषित आहार निकाल लिया जाये और शेष शुद्ध आहार शुद्ध बने तो वह विशुद्धि कोटि का दोष है ।। १६ ।। २२८ उत्पादन शब्द का अर्थ और पर्यायवाची शब्द उप्पायण संपायण णिव्वत्तणमो य होंति आहारस्सिह पगया तीए दोसा इमे उत्पादनं सम्पादनं निर्वर्तना च भवन्ति आहारस्येह प्रकृतास्तस्या दोषाः इमे उत्पादन, सम्पादन और निर्वर्तना • ये शब्द एकार्थक हैं। इनका अर्थ 'प्राप्त करना'। प्राप्त करना सचेतन, अचेतन आदि वस्तु की अपेक्षा से दो प्रकार का होता है, किन्तु यहाँ गृहस्थ के घर से आहार को प्राप्त करने का प्रकरण है, इसलिए ये निम्नांकित दोष उससे ही सम्बन्धित होते हैं ।। १७ ।। उत्पादन के १६ दोषों के नाम है - - एगट्ठा । होंति ।। १७ ।। धाती दूती णिमित्ते आजीव वणीमगे तिगिच्छा कोहे माणे माया लोभे य हवंति दस पुव्विं पच्छासंथव विज्जा मंते य चुण्ण जोगे उप्पायणयाऍ दोसा सोलसमे मूलकम्मे धात्री दूती निमित्तम् आजीवो वनीपक: चिकित्सा क्रोधः मानो माया लोभश्च भवन्ति दश एते ॥ १८ ॥ पूर्वं पश्चात्संस्तवो विद्या मन्त्रश्च चूर्णो योगश्च । उत्पादनायाः दोषाः षोडश मूलकर्म च । एकार्था: । भवन्ति ।। १७ ।। धाइत्तणं करेति पिंडट्ठाए तहेव तीयादिणिमित्तं वा कहेइ जच्चाइ Jain Education International च ।। १९ ।। १. धात्री, २. दूती, ३. निमित्त, ४. आजीव, ५. . वनीपक, ६. चिकित्सा, ७. क्रोध, ८. मान, ९. माया, १० लोभ, ११. पूर्व-पश्चात् संस्तव, १२. विद्या, १३. मन्त्र, १४. चूर्ण, १५. योग और १६. मूलकर्म ये सोलह उत्पादन के दोष हैं ।। १८-१९ ॥ उत्पादन के सोलह दोषों का स्वरूप य । एते ।। १८ ।। य । य ॥। १९ ।। दूतित्तं । वाऽऽजीवे ॥ २० ॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001701
Book TitlePanchashak Prakaranam
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorSagarmal Jain, Kamleshkumar Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1997
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Religion, & Ritual
File Size24 MB
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