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पञ्चाशकप्रकरणम्
[ त्रयोदश
साधुओं के लिए सचित्त फल, बीज आदि को अचित्त अर्थात् जीवनरहित करना और अचित्त चावल आदि को पकाना आधाकर्म कहलाता है ।। ७ ।।
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उद्देसिय साहुमाई उमच्चए भिक्खवियरणं जं उव्वरियं मीसेउं तविउं उद्देसियं तं औद्देशिकं साध्वादीन् अवमात्यये भिक्षावितरणं उद्धरितं मिश्रयित्वा तापयित्वा औद्देशिकं
औद्देशिक दोष तीन प्रकार का है
१. उद्दिष्ट - औद्देशिक दुष्काल बीत जाने पर आकस्मिक रूप से मुनियों के आ जाने पर गृहस्थ अपनी पत्नी से कहे कि उसे अब साधु आदि को भिक्षा देना है इस उद्देश्य से वह स्त्री अधिक भोजन बनाये तो वह औद्देशिक दोष है । इसमें साधु को हमेशा भिक्षा देने का उद्देश्य होने से इसे उद्दिष्ट - औद्देशिक कहा जाता है।
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१.
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२. कृत- औद्देशिक- विवाहादि के अवसर पर भोजनोपरान्त अवशिष्ट भात आदि को दही आदि स्वादिष्ट वस्तु के साथ मिलाकर भिक्षा में दिया जाये तो वह कृत- औद्देशिक दोष है।
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च ।
तु ॥ ८ ॥
यच्च ।
३. कर्म - औद्देशिक – मिठाई आदि के चूर्ण को अग्नि में तपाकर गुड़ आदि मिलाकर मिठाई बनाकर देना कर्म - औद्देशिक दोष है। अचित्त को पकाने रूप आधा कर्म के उद्देश्य से युक्त होने के कारण यह दोष कर्म - औद्देशिक कहा जाता है। इन तीनों के चार-चार उपभेद होते हैं - उद्देश, समुद्देश, आदेश और समादेश || ८ ||
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तत्तु ।। ८ ।।
पूति और मिश्र दोष का स्वरूप
कम्मावयवसमेयं संभाविज्जति जयं तु तं पूयं । पढमं चिय गिहिसंजयमीसोवक्खडाइ' मीसं तु ॥ ९ ॥ कर्मावयवसमेतं संभाव्यते यकत्तु तत्पूतम् । प्रथममेव गृहिसंयतमिश्रोपस्कृतादि मिश्रं
तु ।। ९ ।।
आधाकर्मिक आहार के एक अंश से भी युक्त आहार पूति- दोष से युक्त होता है। पूति - दोष उपकरण और भक्तपान के भेद से दो प्रकार का है। आधाकर्मिक चूल्हा आदि उपकरणों के संयोग से शुद्ध आहार पूतिदोष वाला
मीसोवखडाइ' इति पाठान्तरम् ।
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