SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 328
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ त्रयोदश] पिण्डविधानविधि पञ्चाशक २२३ ३. पूतिकर्म - शुद्ध आहार में अशुद्ध आहार मिला कर पूरे आहार को अशुद्ध बनाना पूतिकर्म है। ४. मिश्रजात - गृहस्थ और साधु दोनों के मिश्रित उद्देश्य से बनाया गया भोजन मिश्रजात है। ५. स्थापना - साधु को देने के लिए अमुक समय तक आहार रखे रहना स्थापना दोष है। ६. प्राभृतिका – साधुओं के आगमन के कारण निश्चित किये गये समय से पहले भोज आदि का आयोजन करके साधु को भिक्षा देना प्राभृतिका है। ७. प्रादुष्करण - साधु को भिक्षा देने के लिए भोजन को खुला करना (उघाड़ना) प्रादुष्करण दोष है। ८. क्रीत - साधु के लिए खरीद कर भोजन देना। ९. अपमित्य - उधार लेकर साधु को भिक्षा देना। १०. परावर्तित - वस्तुओं की अदला-बदली करके साधु को भिक्षा देना। ११. अभिहत - साधु को देने के लिए अपने स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाया गया भोजन अभिहृत दोष वाला है। १२. उद्भिन - साधु के लिए बखार, कोठी, अलमारी आदि खोलना उद्भिन दोष है। १३. मालापहृत - साधु को देने के लिए ऊपरी मंजिल से वस्तु नीचे लाना मालापहृत है। १४. आच्छेद्य - साधु को देने के लिए पुत्रादि के पास से वस्तु वापिस ले लेना। १५. अनिसृष्ट - अनेक लोगों के अधिकार वाली वस्तु को उनकी आज्ञा के बिना देना अनिसृष्ट दोष है। १६. अध्यवपूरक- अपने लिए बन रही रसोई में साधु के निमित्त से और अधिक मिला लेना अध्यवपूरक दोष है ।। ५-६ ।। आधाकर्म दोष का स्वरूप सच्चित्तं जमचित्तं साहूणऽट्ठाएँ कीरए जं च । अच्चित्तमेव पच्चति आहाकम्मं तयं भणियं ।। ७ ।। सचित्तं यदचित्तं साधूनामर्थाय क्रियते यच्च । अचित्तमेव पच्यते आधाकर्म तकं भणितम् ॥ ७ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001701
Book TitlePanchashak Prakaranam
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorSagarmal Jain, Kamleshkumar Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1997
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Religion, & Ritual
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy