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पञ्चाशकप्रकरणम्
पञ्चाशकप्रकरणम
[त्रयोदश
और शंकित आदि दस एषणा दोष हैं - इस प्रकार पिण्ड सम्बन्धी कुल ब्यालीस दोष हैं ।। ३ ।।
उद्गम शब्द का अर्थ और उसके पर्यायवाची शब्द तत्थुग्गमो पसूई पभवो एमादि होति एगट्ठा । सो पिण्डस्साहिगओ इह दोसा तस्सिमे होति ।। ४ ।। तत्रोद्गम: प्रसूतिः प्रभव एवमादयो भवन्ति एकार्थाः । सः पिण्डस्याधिकृत इह दोषास्तस्येमे भवन्ति ।। ४ ।।
उद्गम, प्रसूति, प्रभव, आदि शब्द एकार्थक हैं अर्थात् इन सबका एक ही अर्थ है – 'उत्पन्न होना। वैसे तो उद्गम शब्द का अर्थ उत्पत्ति है, किन्तु प्रस्तुत प्रकरण में उद्गम का यह अर्थ विवक्षित नहीं है। यहाँ पिण्ड (आहार) की उत्पत्ति में होने वाले दोष ही विवक्षित हैं। साधु के लिए पकाना, रखना, ढंके हुए को उद्घाटित करना आदि आहार के उद्गम के दोष हैं, इसलिए ये उद्गम दोष कहलाते हैं ।। ४ ।।
उद्गम के सोलह दोष आहाकम्मुद्देसिय पूतिकम्मे य मीसजाए य। ठवणा पाहुडियाए पाओयर-कीअ-पामिच्चे ।। ५ ॥ परियट्टिए अभिहडे उभिण्णे मालोहडे इय । अच्छेज्जे अणिसटे अज्झोयरए य सोलसमे ॥ ६ ॥ आधाकौद्देशिकं पूतिकर्म च मिश्रजातञ्च । स्थापना प्राभृतिका प्रादुष्कर-क्रीत-अपमित्यम् ।। ५ ।। परिवर्तितं अभिहतम् उद्भिन्नं मालापहमिति । आच्छेद्यम् अनिसृष्टम् अध्यवपूरकं चषोडश ।। ६ ।।
१. आधाकर्म, २. औद्देशिक, ३. पूतिकर्म, ४. मिश्रजात, ५. स्थापना, ६. प्राभृतिका, ७. प्रादुष्कर, ८. क्रीत, ९. अपमित्य, १०. परावर्तित, ११, अभिहत, १२. उद्भिन्न, १३. मालापहत, १४. आच्छेद्य, १५. अनिसृष्ट और १६. अध्यवपूरक - ये सोलह उद्गम दोष हैं।
१. आधाकर्म - साधु को लक्ष्य में रखकर बनाया गया भोजन आधाकर्म दोषवाला है।
२. औद्देशिक - साधु को भिक्षा देने के उद्देश्य से बनाया गया भोजन औदेशिक है।
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