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पिण्डविधानविधि पञ्चाशक
निमंत्रणा सामाचारी का सम्बन्ध पिण्डग्रहण ( भिक्षाग्रहण) से है। इस पिण्डग्रहण की विधि से विशुद्ध आहारादि की गवेषणा करनी चाहिए । यहाँ पिण्डविशुद्धि के विधान का प्रतिपादन करने हेतु सर्वप्रथम मङ्गलाचरण करते हैं—
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मंगलाचरण
नमिऊण महावीरं पिंडविहाणं समासओ वोच्छं ।
समणाणं पाउग्गं गुरूवसानुसारेणं ॥ १ ॥ पिण्डविधानं समासतो वक्ष्ये ।
प्रायोग्यं
गुरूपदेशानुसारेण ॥ १ ॥
भगवान् महावीर को नमस्कार करके गुरु के उपदेश के अनुसार श्रमणों के योग्य भक्तपान आदि ग्रहण सम्बन्धी पिण्डग्रहण विधि को संक्षेप में कहूँगा ॥ १ ॥
नत्वा महावीरं
श्रमणानां
सुद्धो पिंडो विहिओ समणाणं संजमायहेउत्ति ।
सो पुण इह विणेओ उग्गमदोसादिरहितो जो ॥ २ ॥
शुद्धः पिण्डो विहितः श्रमणानां संयमात्महेतुरिति । सः पुनरिह विज्ञेय उद्गमदोषादिरहितो यः ॥ २ ॥ गुरुजनों ने पृथ्वीकायिक आदि जीवों के संरक्षण रूप संयम पालन एवं शरीर-रक्षा के लिए शुद्ध आहार ( पिण्ड ) का विधान किया है। जो उद्गम आदि दोषों से रहित आहार है, वह शुद्ध है, ऐसा जानना चाहिये ।। २ ।।
उद्गम आदि दोषों की संख्या
सोलस उग्गमदोसा सोलस उप्पायणाएँ दोसा उ । दस एसणाइ दोसा बायालीस इय
हवंति ।। ३ ।।
दोषास्तु |
षोडश उद्गमदोषाः षोडश उत्पादनाया दश एषणाया दोषाः द्विचत्वारिंशदिति भवन्ति ।। ३ ।।
आधाकर्म आदि सोलह उद्गम दोष, धात्री आदि सोलह उत्पादन दोष
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