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द्वादश ]
नवागन्तुक को वापिस भेज देना चाहिए।
६. पहले वाला यदि यावत्कथिक हो और आगन्तुक इत्वर हो तो भी इसी प्रकार (२ से ५ तक के अनुसार) निर्णय करना चाहिए। इसमें इतना अवश्य हो सकता है कि पहले वाले को प्रेम से समझाकर कहे कि आगन्तुक अल्प समय के लिए आये हुये हैं इनके रहने तक आराम करें, इस पर भी यदि वह तैयार न हो तो आगन्तुक को वापिस कर देना चाहिए।
साधुसामाचारीविधि पञ्चाशक
७. यदि पहले वाला इत्वर हो और आगन्तुक यावत्कथिक हो तो पहले वाले को उपाध्यायादि को सौंप देना चाहिए और आगन्तुक को अपने पास रखना चाहिए।
८. यदि दोनों इत्वर हों तो एक को अपने पास और दूसरे को उपाध्यायादि के पास भेज देना चाहिए।
तप सम्बन्धी उपसम्पदा स्वीकारने के विकल्प
तपस्वी भी इत्वर और यावत्कथिक के भेद से दो प्रकार के होते हैं मृत्यु के समय आमरण अनशन करने वाला यावत्कथिक है। इत्वर तपस्वी के विकृष्ट और अविकृष्ट ये दो भेद हैं। अट्ठम आदि तप करने वाला विकृष्ट तपस्वी होता है और छट्ट तक तप करने वाला अविकृष्ट तपस्वी होता है।
दोनों प्रकार के तपस्वियों से आचार्य इस प्रकार कहें यदि तुम पारणा के समय शिथिल हो जाते हो तो तप छोड़कर वैयावृत्य आदि में उद्यम करो।
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कुछ आचार्यों का कहना है कि विकृष्ट तपस्वी यदि पारणा के समय शिथिल हो जाता हो तो भी स्वीकार कर लेना चाहिए। मासक्षपण तप करने वाले या यावत्कथिक तपस्वी को अवश्य स्वीकार करना चाहिए, किन्तु उन्हें स्वीकार करने के पहले आचार्य को अपने गच्छ से पूछना चाहिए। इससे सामाचारी भंग नहीं होती है ।। ४७ ।।
उपसंहार
एवं सामायारी कहिया दसहा समासओ एसा । संयमतवड्डगाणं णिग्गंथाणं महरिसीणं ॥ ४८ ॥
एवं सामाचारी कथिता दशधा समासत एषा । संयमतपोभ्यामाढ्यकानां निर्ग्रन्थानां महर्षीणाम् ॥ ४८ ॥
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इस प्रकार संयम और तप से परिपूर्ण निर्ग्रन्थ महर्षियों की संक्षेप में दस प्रकार की सामाचारी कही गयी है ।। ४८ ।।
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