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________________ द्वादश ] साधुसामाचारीविधि पञ्चाशक संयमयोगे अभ्युत्थितस्य मिथ्या एतदिति यत्किञ्चिद्वितथमाचरितम् । तद्दुष्कृतं देयम् ।। १० ।। विज्ञाय समिति-गुप्ति आदि रूप चारित्र के व्यापार में प्रवृत्त जीव से यदि कोई छोटी-बड़ी गलती हुई हो तो, यह गलत है ऐसा जानकर उसे दुष्कृत देना चाहिए अर्थात् उससे 'मिच्छा मे दुक्कडं' कहना चाहिए || १० | मिथ्या दुष्कृत देने के भाव सुद्धेणं भावेणं अपूणकरणसंगतेण तिव्वेणं । एवं तक्कम्मखओ एसो से शुद्धेन भावेन अपुनः करणसंगतेन एवं तत्कर्मक्षय एषः तस्य यह गलती फिर नहीं करूँगा – ऐसे तीव्र और शुभभाव से 'मिच्छा मे दुक्कड' देना चाहिए। मिथ्या दुष्कृत देने से कर्मक्षय होता है। अत्थणामि ।। ११ ।। तीव्रेण । अर्थज्ञाने ।। ११ ।। यहाँ तीव्र शब्द का अभिप्राय यह है कि जितने भाव से भूल की हो उससे अधिक शुभभाव से मिथ्या दुष्कृत देना चाहिए, क्योंकि तभी कर्मक्षय होता है। उतने तीव्रभाव ‘मिच्छा मे दुक्कडं' पद का अर्थ जानने पर होता है ॥ ११ ॥ Jain Education International मिच्छामि दुक्कडं पद का अर्थ मित्ति मिउमद्दवत्ते छत्ति उ दोसाण छादणे मेत्ति य मेराऍ ठिओ दुत्ति दुगुंछामि कत्ति कडं मे पावं डत्ति य डेवेमि तं एसो मिच्छादुक्कडपयक्खरत्थो ― 'मि' इति मृदुमार्दवत्वे 'छा' इति तु दोषाणां छादने 'मे' इति च मर्यादायां स्थितो 'दु' इति जुगुप्सामि 'क' इति कृतं मे पापं 'ड' इति च डिये मिथ्यादुष्कृतपदाक्षरार्थः एष - २०५ - — च्छा दुष्कृत 'मिच्छामि दुक्कड' पद में मि, च्छा, मि, दु, क्क और डं अक्षर हैं। इनके अर्थ क्रमश: इस प्रकार हैं मि मृदुता (नम्रता ), दोषों का छादन करना ( फिर नहीं होने देना), मि मर्यादा में, दु करने वाली आत्मा की निन्दा करता हूँ। इनका सामूहिक अर्थ इस प्रकार है काया और भाव से नम्र बनकर 'भूल फिर से नहीं करूँ' ऐसे भाव से मर्यादित मैं दुष्कृत करने वाली अपनी आत्मा की निन्दा करता हूँ। For Private & Personal Use Only होति । अप्पाणं ।। १२ । उवसमेणं । समासेणं ॥ १३ ॥ भवति । आत्मानम् ।। १२ ।। तदुपशमेन । समासेन ।। १३ । - ये छह www.jainelibrary.org
SR No.001701
Book TitlePanchashak Prakaranam
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorSagarmal Jain, Kamleshkumar Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1997
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Religion, & Ritual
File Size24 MB
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