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________________ २०४ पञ्चाशकप्रकरणम - [द्वादश एवमाज्ञाऽऽराधनयोगाद् आभियोगिकक्षय इति । उच्चैर्गोत्रनिबन्ध: शासनवर्णश्च लोके ।। ७ ।। इस प्रकार इच्छाकार सामाचारो का पालन करने में किसी पर बलात्कार नहीं करना चाहिए' इससे आप्त की आज्ञा का पालन होता है। इस आज्ञा-पालन से निम्न लाभ होते हैं - १. पराधीनताजनक कर्मों का नाश होता है। २. उच्चगोत्र कर्म का बन्ध होता है और ३. लोक में जैनशासन के प्रति लोगों का सम्मान बढ़ता है ।। ७ ।। साधुओं की मर्यादा आणाबलाभिओगो णिग्गंथाणं ण कप्पती काउं । इच्छा पउंजियव्वा सेहे तह चेव राइणिए ॥ ८ ॥ आज्ञाबलाभियोगो निम्रन्थानां न कल्पते कर्तुम् । इच्छा प्रयोक्तव्या शैक्षे तथा चैव रालिके ।। ८ ।। आज्ञा और बलात्कार करना साधु का आचार नहीं है, क्योंकि इससे दूसरों को कष्ट होता है और पराधीनताजनक कर्मों का बन्ध होता है। दूसरों से कोई काम करवाने या करने की आवश्यकता पड़ने पर शैक्ष्य (नवदीक्षित) और रत्नाधिक के प्रति इच्छाकार का प्रयोग करना चाहिए ।। ८ ।। अपवाद से आज्ञा और बलात्कार भी किया जा सकता है जोग्गेऽवि अणाभोगा खलियम्मि खरंटणावि उचियत्ति । ईसिं पण्णवणिज्जे गाढाजोगे उ पडिसेहो ।। ९ ।। योग्येऽपि अनाभोगात् स्खलिते खरण्टनापि उचितेति । ईषत् प्रज्ञापनीये गाढायोग्ये तु प्रतिषेधः ।। ९ ।। कल्याण और उपदेश के योग्य गुणी साधु को अनुपयोग के कारण स्खलित होने पर उलाहना देना भी उचित है, अर्थात् उसे आज्ञा से या बलपूर्वक भी मार्ग में लाना उचित है। ध्यान रहे कि उसे अधिक उलाहना भी न दें। अत्यधिक अयोग्य जीव को तो उलाहना देना ही नहीं चाहिए ।। ९ ।। मिथ्याकार सामाचारी का विवेचन . संजमजोगे अब्भुट्ठियस्स जं किंचि वितहमायरियं । मिच्छा एतंति वियाणिऊण तं दुक्कडं देयं ।। १० ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001701
Book TitlePanchashak Prakaranam
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorSagarmal Jain, Kamleshkumar Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1997
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Religion, & Ritual
File Size24 MB
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