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________________ द्वादश ] साधुसामाचारीविधि पञ्चाशक २०३ दूसरों से काम कराना या दूसरों का काम करना नहीं चाहिए। ३. रत्नाधिक से काम नहीं कराना चाहिए ।। ४ ।। दूसरों से कार्य कराने सम्बन्धी स्पष्टीकरण सइ सामत्थे एसो णो कायव्वो विणाऽहियं कज्जं । अब्भत्थिएणवि विहा एवं खु जइत्तणं सुद्धं ।। ५ ।। सति सामर्थ्य एषो न कर्तव्यो विनाऽधिकं कार्यम् । अभ्यर्थितेनापि वृथैवं खलु यतित्वं शुद्धम् ।। ५ ॥ कार्य करने की शक्ति हो तो दूसरों से वह कार्य न करवाकर स्वयं ही करना चाहिए। दूसरों से नहीं होने योग्य कार्य (ग्लानसेवा, व्याख्यानादि) स्वयं करने पड़ें तो वस्त्रपरिकर्म (वस्त्रसीना) आदि कार्य दूसरों से इच्छाकार के द्वारा करवाना चाहिए और दूसरे साधु को भी इनकार किये बिना उसे कर देना चाहिए। ऐसा करने से दोनों की साधुता शुद्ध बनती है, क्योंकि इससे वीर्याचार का पालन होता है ॥ ५ ॥ दूसरे का कार्य न हो सकने और हो सकने की स्थिति में इच्छाकार - सामाचारी का पालन करना चाहिए कारणदीवणयाइवि' पडिवत्तीइवि य एस कायव्वो । राइणियं वज्जेत्ता तगोचिए तम्मिवि तहेव ।। ६ ॥ कारणदीपनायामपि प्रतिपत्तावपि च . एषः कर्तव्यः । रालिकं वर्जयित्वा तकोचिते तस्मिन्नपि तथैव ।। ६ ।। दूसरे का कार्य न कर सकने की स्थिति हो तो आपका कार्य करने की मेरी इच्छा तो है, परन्तु मैं वह कार्य करने में समर्थ नहीं हूँ', ऐसा कहना चाहिए और यदि कार्य कर सकने की स्थिति हो तो स्वीकार कर लेना चाहिए। दूसरों से कार्य करवाने की स्थिति हो तो रत्नाधिक को छोड़कर दूसरों से करवाना चाहिए। रत्नाधिक से नहीं करवाना चाहिए, क्योंकि वह पूज्य होता है। रत्नाधिक के योग्य कोई कार्य हो तो उसकी इच्छापूर्वक करवाना चाहिए ।। ६. ॥ .. इच्छाकार सामाचारी का फल एवं आणाऽऽराहणजोगाओ आभिओगियखओत्ति । उच्चागोयणिबंधो सासणवण्णो य लोगम्मि ।। ७ ।। १. '... दीवणएऽवि' इति पाठान्तरम्। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001701
Book TitlePanchashak Prakaranam
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorSagarmal Jain, Kamleshkumar Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1997
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Religion, & Ritual
File Size24 MB
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