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________________ एकादश ] साधुधर्मविधि पञ्चाशक १९९ जिस प्रकार निश्चयनय के अनुसार चारित्र का विघात होने पर ज्ञान-दर्शन का विधात अवश्य होता है, उसी प्रकार व्यवहारनय के अनुसार अनन्तानुबन्धी कषाय के कारण पृथ्वी को जीव न मानकर उसका आरम्भ करने रूप अभिनिवेश से चारित्र का विघात होता है तो ज्ञान और दर्शन का विघात होगा। प्रतिषिद्ध पृथ्वीकाय आदि सम्बन्धी आरम्भ करने से चारित्र का, अज्ञानता से ज्ञान का और अश्रद्धा से दर्शन का घात होता है ।। ४७ ।। किन्तु किसी प्रकार के अभिनिवेश के बिना अनाभोग आदि के कारण विपरीत प्रवृत्ति होने से चारित्र का घात होने पर भी ज्ञान-दर्शन का घात नहीं होता है, क्योंकि वैसे जीवों में पश्चात्ताप आदि होने से ज्ञान-दर्शन का कार्य दिखलाई देता है। अर्थात् जो अनाभोग आदि के कारण निषिद्ध आचरण करते हैं वे पश्चात्ताप करते हैं और पश्चात्ताप, प्रायश्चित्त और संवेग ज्ञान-दर्शन के कार्य के कार्य हैं। इसलिए यह विदित होता है कि अनाभोग से चारित्र का घात होने पर भी ज्ञान-दर्शन का घात नहीं होता है ।। ४८ ।।। भाव साधु का स्वरूप तम्हा जहोइयगुणो. आलयसुद्धाइलिंगपरिसुद्धो । पंकयणातादिजुओ विण्णेओ भावसाहुत्ति ।। ४९ ।। तस्माद्यथोचितगुण आलयशुद्ध्यादिलिङ्गपरिशुद्धः ।। पङ्कजज्ञातादियुतो विज्ञेयो भावसाधुरिति ।। ४९ ।। इसलिए जो पूर्वोक्त गुरुकुलवास रूप गुण से युक्त है, जिसमें सुविहित साधु के वसतिशुद्धि आदि लक्षण दिखते हैं तथा औपपातिकसूत्र में कमलपत्र आदि उदाहरणों के माध्यम से बतलाये गये भाव जिसमें हैं, उसे भाव साधु जानना चाहिए। सुविहित साधु के लक्षण इस प्रकार हैं - १. वसतिशुद्धि --- वसति का प्रमार्जन आदि ठीक करना या स्त्री, पशु आदि से रहित वसति में रहना।। २. विहारशुद्धि – शास्त्रोक्त मासकल्प आदि विधि से विहार करना। ३. स्थानशुद्धि - अविरुद्ध स्थान में कायोत्सर्ग करना। ४. गमनशुद्धि - युगप्रमाण दृष्टि रखकर चलना। ५. भाषाशुद्धि - विचार करके बोलना। ६. विनयशुद्धि - आचार्य आदि के प्रति विनीत होना। कमलपत्र आदि का उदाहरण इस प्रकार है – भावसाधु काँसे के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001701
Book TitlePanchashak Prakaranam
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorSagarmal Jain, Kamleshkumar Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1997
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Religion, & Ritual
File Size24 MB
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