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पञ्चाशकप्रकरणम्
[ एकादश
किसी कौए ने उन्हें टोका और उस तालाब में ही पानी पीने को कहा। कुछ ने उसी तालाब में पानी पिया और अन्य अनेक उसकी अवज्ञा करके मृगतृष्णा की ओर गये। जहाँ पानी न मिलने के कारण वे मृत्यु को प्राप्त हो गये और जिन्होंने उस तालाब का ही पानी पिया, वे जीवित रह गये।
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उपर्युक्त उदाहरण को प्रस्तुत प्रसंग में इस प्रकार घटित किया जा सकता है सुंदर तालाब के समान गुरुकुल गुणों का स्थान है। कौओं के समान धर्मार्थी जीव हैं। पानी के समान चारित्र है। गुरुकुल से बाहर रहना मृगतृष्णा सरोवर के समान है। कौओं को शिक्षा देने वाले कौए के समान गीतार्थ है । चारित्र के योग्य और धर्म रूप धन को पाने वाले जो थोड़े साधु गुरुकुल में रहे वे तालाब का पानी पीने वाले कौओं के समान हैं ॥ ३८ ॥
गुरुकुलत्यागियों का सम्मान करने वालों को उपदेश सिं बहुमाणेणं उम्मग्गऽणुमोयणा अणिट्ठफला । तम्हा तित्थगराणाठिएसु जुत्तोऽत्थ बहुमाणो ।। ३९ ।।
अनिष्टफला ।
तेषां बहुमानेन उन्मार्गानुमोदना तस्मात् तीर्थकराज्ञास्थितेषु युक्तोऽत्र बहुमानः ।। ३९ ।।
गुरुकुल छोड़ने वालों का सम्मान करना उन्मार्ग का अनुमोदन करना है,
जो अनिष्ट फलदायी है। इसलिए गुरुकुल में रहकर जिनाज्ञा का पालन करने वाले साधुओं का सम्मान करना ही योग्य है ।। ३९ ॥
जिनाज्ञा में रहे हुए साधुओं का स्वरूप
ते
पुण समिया गुत्ता पियदढधम्मा जिइंदियकसाया । गंभीरा धीमंता पण्णवणिज्जा महासत्ता ॥ ४० ॥ उस्सग्गववायाणं वियाणगा सेवगा भावविसुद्धिसमेता आणारुतिणो य
जहासत्तिं ।
सम्मति ।। ४१ ।
सव्वत्थ अपडिबद्धा मेत्तादिगुणण्णिया य णियमेण । सत्ताइसु होति दढं इय आययमग्गतल्लिच्छा ।। ४२ ।। एवंविहा उ णेया सव्वणयमतेण समयणीतीए । भावेण भाविएहिं सइ चरणगुणट्ठिया साहू ।। ४३ ।। ते पुनः समिता गुप्ताः प्रियदृढधर्मा जितेन्द्रियकषायाः । गम्भीरा धीमन्तः प्रज्ञापनीया महासत्त्वाः ।। ४० ।।
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